पदचाप तुम्हारी धीमीं सी
कानों में रस घोले
था इंतज़ार तुम्हारा ही
यह झूट नहीं है प्रभु मेरे |
जब भी चाहा तुम्हें बुलाना
अर्जी मेरी स्वीकारी तुमने
अधिक इंतज़ार न करवाया
धीरे से पग धरे कुटिया में |
तुम्हारी हर आहट की है पहचान मुझे
कितनी भी गहरी नींद लगी हो
या व्यस्तता रही हो
तुम्हारी पदचाप का अनुसरण है प्रिय मुझे |
इसे मेरी भक्ति कहो
या जो चाहे नाम दो
इससे मुझे वंचित न करो
यही है मेरा अनुराग तुमसे |
चाहे कोई इसे अंधभक्ति कहे
है मेरे जीने का संबल यही
अपना सेवक जान मुझे
चरणों में दो स्थान मुझे |
हूँ एक छोटा सा व्यक्ति
तुम्हारे चरणों की धुल बराबर
यही समझ स्वीकार करो
मेरा बेड़ा पार करो |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (29-07-2020) को "कोरोना वार्तालाप" (चर्चा अंक-3777) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
सूचना हेतु आभार सर |
हटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 29 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सूचना हेतु आभार पम्मी जी |
हटाएंभक्ति भाव में रची बसी बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंआदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंभक्ति भाव से भरी हुई सुन्दर प्रार्थना।भगवान जी हम सब को विनती स्वीकारें औए हमारे बुलाने पर हमारे पास आ जाएं।
धन्यवाद अनंता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबेहतरीन रचना आदरणीया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएं