04 दिसंबर, 2021

जलवा तुम्हारा


  

रूप रंग स्वभाव तुम्हारा  

 जलवा तुम जैसा  

 है ही  ऐसा

हो तुम  सब से  जुदा |

तुम्हारा मन किसी से

 मेल नहीं खाता

देख कर किसी को भी

 अंतरमुखी हो जाता |

सब चाहते तुमसे 

मिलना जुलना बातें करना

पर तुम्हें है  पसंद

 गुमसुम रहना |

भूले से यदि मुस्कुराईं

मन को भी भय  होता

 यह बदलाव कैसा 

 यह क्या हुआ ?

हो गुमसुम गुड़िया जैसी  

कोई समस्या नहीं तुम में 

 तुम्हारा स्वभाव है जन्म जात  या

 परिस्थिति वश मालूम नहीं |

तुम्हें समझना है कठिन

सहज कार्य नहीं है 

बोलने में हो कंजूस पर

 मुस्कुराने में कमी नहीं |

जो भी देखता एकटक तुम्हें 

पलकें तक नहीं झपकतीं 

देखता ही रह जाता 

 अनुपम आकर्षण तुम्हारा | 

तुम हो लाखों में एक

 हो गुण सम्पन्न इतनी   

किसी से कम नहीं हो 

एक झलक ही  तुम्हारी है अनुपम |

आशा 

03 दिसंबर, 2021

हिन्दी भाषा की अधोगति


 

पत्र लेखन कितना कठिन था

 पहले कभी समस्या न थी 

अब तो यह भी भूल गए

संबोधन किसे कैसे करें |

जब से दूर भाष यंत्र का

प्रयोग हुआ प्रारम्भ

लिखने की गति भी  

बाधित हुई है |   

यह कठिनाई बढ़ती गई     

 जब परीक्षा में पत्र लिखना होता  

मुश्किल से पांच अंकों में से

  दो अंक ही प्राप्त होते है |

अब तो “u” से ही काम चल जाता है

“you” के स्थान  पर 

पूरा नाम क्यों लिखें जब

दस्तखत से ही काम चले |

लिखने से बचने के लिए

कई साधन हैं उपलब्ध अब

लगने लगा है अब तो

  लिपि भी कहीं खो जाए ना |

अक्षर आँखों के आगे

 गोल गोल घूमेंगे

फिर भी समझ में न आएगा

 क्या लिखना चाहा और क्या लिखा है |

सुन्दर और शुद्ध लेखन कल्पना में

रह  गया है केवल

कोई अहमियत नहीं रही उसकी 

शिक्षा सतही हो गई है |

भाषा का अधोपतन

 और कितना होगा

खिचड़ी भाषा बोलने में

कोई शर्म नहीं आती |

यह शान की बात होती है कि

 प्रत्येक वाक्य में

आधी अंग्रेजी आधी हिन्दी

 बोली जाती है |

भाषा की शुद्धता की  क्या बात करें  

 भाषा में मिलावट दाल में कंकड़ सी हुई 

मन का संताप नहीं मिटता 

यह हाल भाषा का देख |

बड़ी बड़ी बातें की जाती 

भाषा के अधोपतन की

उससे बचने के लिए उन्नति के लिए

भाषा की  प्रगति के लिए |

आशा 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

02 दिसंबर, 2021

प्रकृति की उपस्थिति में प्रेम


 

शबनम में भीगा गुलाब

मौसम का हाल बताता

पत्तों पर ओस नाचती

जाड़ों का एहसास कराती |

पारीजात की श्वेत चादर 

बिछ गई वृक्ष के नीचे 

उस पर घूमें चहल कदमीं करें 

तन मन को महकालें |

किया प्यार का इजहार  

कब कहाँ  किससे सीखा

बताना आवश्यक नहीं था क्या ? 

 मैं अनजान रही उससे |

भोर का चमकता सितारा

अम्बर में अकेला दमकता रहा

    चन्द्रमा को साथ ले    

 कब हुआ ओझल जान नहीं पाई |

 है सूर्य रश्मियों की सलाह

या नीला आसमान गवाह  

कौन कब मन भाया

 यह तक नहीं जताया |

होकर कुशल चितेरे तुमने

 रंग भरे कोरे कागज़ पर  मेरे जीवन के     

कुछ नयनों में बस गए ऐसे  

   कानों में की चहचहाहट पक्षी बन के    | 

 और भोर का आगाज हुआ 

मेरा जीवन रंगीन हुआ 

रात दिन कब बीते 

अब यह तक याद नहीं |

आशा 

 

01 दिसंबर, 2021

प्रातःवंदन (हाइकु )


प्रातः वंदन
होता है सुखदाई
दिल को छुए
हार न मानी
किसी बात से कभी
दृढ़ता रही

किससे कहें
मन की बात छिपी
अब मन में

प्रात:बेला में
पत्तियों पर बूँदें
शबनम की

जब नाचतीं
पत्तों पे थिरकतीं
आकृष्ट करें

आशा

1 Comment


  • Pause GIF
    GIF
    GIPHY
    1
    • Like
    • Reply
    • 4d

मन का मंथन


 

कभी अहम् कभी गरूर

कहाँ से आते आम आदमीं में

क्या कोई विशेष कक्षा होती

इन बातों की शिक्षा के लिए |

जब कक्षा में पढ़ने जाते   

कुछ भी अच्छा नहीं सीख पाते  

दुर्गुण  पीछा नहीं छोड़ते

चलती राह में भी उसे  पकड़ते |

उन पर  जब आत्म मंथन करते

उन विचारों पर मनन करते

मन ग्लानि से भर जाता

क्षण भर में ही मन में घर कर जाता |

जब अपनी आदतों का विश्लेषण करते

खुद से वादा करते बारम्बार

गलत राह पर न चलने का 

मन को वश में रखने का   |

यही यदि मन में दृढ़ता होती  

दृढ़ संकल्प लेते कुछ गलत न करते

  पलट कर न देखते उस ओर 

तभी सफल जीवन होता

 पैर न फिसल पाता |  

आशा 

30 नवंबर, 2021

कान्हां संग नेह लगाया

 


कान्हां संग नेह लगाया

वह कान्हां सी हो गई

ना मीरा बनी न जोगन

ना ही सिद्ध हस्ती हुई |

सारा जग त्याग दिया

माया मोह छोड़ दिया  

ममता न की किसी से

निर्मोही हो कर रह गई |

 दुनियादारी से हुई दूर  

आध्यात्म की ओर झुकी

झुकती ही गई फिर भी 

शान्ति को न खोज सकी |

कान्हां मय होती गई 

दिन रात ध्यान में लीन हुई

अब मन की बेचैनी दूर हुई

वह कान्हां में खो गई |

आशा  

 

 

29 नवंबर, 2021

कोठरी काजल की

 


काजल की कोठरी

में पहुंच काजल की 

कालिख से  कैसे बचेंगे |

कितना भी बच कर चलेंगे

 काला रंग काजल का

लग ही जाएगा |

सोचेंगे साबुन से 

दागों  को   छूटा लेंगे

पर वह भी गलत होगा

दाग फीके तो होंगे फिर भी दिखेंगे |

सावधानी यदि नहीं बरती

कालिख बढ़ती ही जाएगी 

कैसे उनसे छुटकारा मिलेगा

कोई हल नजर नहीं आता |

आशा 


भोर का एकल सितारा देखा


 
भोर का एकल सितारा

देता संकेत सुबह के आगमन का

रश्मियाँ धीरे से झाँकतीं देखती

 वृक्षों की डालियों के बीच में  छिप कर |

जब आतीं खुले आसमा में

अद्भुद आभा उनकी होती   

सध्य स्नाना युवती सी

सजधज कर जब आसमा में विचरतीं |

बहुत आकर्षण होता उनमें

जो खींचता हर दर्शक को अपनी ओर

ये फैली होतीं जब वृक्षों पर

अद्भुद ही द्रश्य होता वहां का |

पेड़ के नीचे बिछी श्वेत पुष्पों की चादर

वहां  से उठने न देती

मन हो जाता विभोर

कहीं जाना न चाहता वहां की शान्ति छोड़ |

खुद से वादा करती

प्रति दिन यहीं आऊंगी

सुबह   की सैर के लिए

मौसम का नजारा देखूंगी जी भर कर |

आशा 

28 नवंबर, 2021

कलम तो कलम है


 

                              कलम तो कलम है वही रहेगी 

लिखने वाले बदल जाएंगे
विचार बदल जाएंगे
वह न बदलेगी |
विचारों को संकलित करना
उनको पुष्पों सा एक माला में पिरोना
रहता तरीका भिन्न सदा
पर लेखक के मन परकलम दिखती निर्जीव
जैसा चाहो उपयोग करलो
पर हो जाती सक्रीय
जब गति पकड़ती |
उसे कोई व्यवधान
पसंद नहीं आता
अपने किसी कार्य के मध्य
वह पूर्ण समर्पण से कोई
कार्य सम्पन्न करती|
वह जो भी कार्य करती
लेखक की संतुष्टि के लिए
लिखने वाले मन का विचलन
कभी भी दुःख दे जाता |
दो कदम भी आगे न बढ़ने देता
यहीं वह हार जाती लाचार होती
कितनी भी कोशिश करती
सभी विफल हो जाती |
फटे पन्नों का प्रदर्शन होता पूरे कमरे में
वह सजा दीखता अनोखे अंदाज मे
तभी बहुत शर्म आती उसे
अक्षम हो कर एक ओर कौने में
असहाय से पड़े रहने में
कुछ कर न पाने में |
कलम की सक्रीयता
यूँ तो कभी कम न होती
पर लेखक के मन पर
निर्भर रहती |
आशा