कविता से कविता का संगम 
जब भी होता एक अनोखा रंग 
सभी के जीवन में होता 
यही सोचना पड़ता 
यह  कैसे हुआ कब हुआ |
जो भी हुआ जाने क्यों हुआ 
पर रंग महफिल में जमा ऐसा 
बेचैन मन को सुकून मिला 
जिसकी तलाश थी मुझे बरसों
से  |
 जब भी बेकरार होती हूँ 
मेरा मन बुझा बुझा सा रहता
है 
नयनों का तालाब भर जाता है 
छलक जाता तनिक अधिक वर्षा
से |
एक यह ही समस्या है ऐसी
 जो मुझे उलझाए रहती अपने आप में 
कुछ सुधार नहीं होता अधीर मन ममें
अच्छी बुरी सब बातों का जमाव
 उद्वेलित करता मेरे मन को  
होती जाती दूर्  कविता के संगम से 
जिसकी मुझे आवश्यकता थी |
आशा
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