कभी पास आना आकर  दूर चले जाना 
कितनी खुशामद करवाना फिर भी न खुश होना
जब होता  असंतोष का गीत
 यही है प्यार की रीत |
मैंने  कभी न चाहा तुम्हारा  प्यार मिले 
पर वरद हस्त का मुझे उपहार अवश्य मिले 
जब भी चाहूँ मेरी मदद के लिए आजाओ 
यही होगा बहुत  उपकार मुझ पर |
इसी  लिए जीने की चाह रहती मुझको 
न कोई चाहत न लागलपेट है मुझको 
नहीं चाहती मुझे किसी का अधिकार छीनूँ
                                         मेरा अधिकार ही मिल जाए जिसकी  अपेक्षा रही  मुझे |
                                                                       आशा
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सुन्दर प्रस्तुति ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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