28 दिसंबर, 2012

पूर्णविराम


सिलसिला कार्यों का
अनवरत चलता रहा
जन्म से आज तक
 थमने का नाम नहीं लिया
  बचपन तो बचपन ठहरा
ना कोई चिंता ना बेचैनी
बस आनंद ही आनंद
जिंदगी रही सरल सहज
अल्पविराम पहला आया
जिंदगी की इवारत में
जब पढने लिखने की उम्र हुई
गृह कार्य की चिंता हुई
कई बार क्रोध आया
जीवन नीरस सा लगा
बगावत का मन भी हुआ
जब तक इति उसकी न हुई
व्यस्तता कुछ अधिक बढ़ी
जब दायित्वों की झड़ी लगी
कर्तव्यों का भान हुआ
अर्धविराम तभी लगी
जिंदगी की रवानी में
दायित्वों  के बोझ तले
जिंदगी दबती गयी
समस्त कार्य पूर्ण किये
अभिलाषा भी शेष नहीं
जीने का मकसद पूर्ण हुआ
पूर्णता का अहसास हुआ
संतुष्ट भाव से खुद को सवारा
अब है इंतज़ार
जीवन की इवारत में
लगते  पूर्णविराम का |
आशा


25 दिसंबर, 2012

नया अंदाज

क्या देख कर
 मुस्कुरा रही हो
जाने  क्या सोच रही हो
सभी को लुभा रही हो |
तुम्हारे चेहरे  का नूर
यह आँखों की चमक
कहती है बहुत कुछ
घुल जाती  मिठास मन में
तुम्हें देख कर |
सरिता भावों से भरी
करती भाव बिभोर
कोई त्रुटि न रह जाए
मन  में रहता भय 
जमाने की बुरी नजर
 से बचाए तुम्हे कैसे |
रहो सदा ऐसी ही
है कामना यही
प्यार भरे अंदाज का
 अदभुद उपहार यही |
आशा