सिलसिला कार्यों का
अनवरत चलता रहा
जन्म से आज तक
थमने का
नाम नहीं लिया
बचपन तो
बचपन ठहरा
ना कोई चिंता ना बेचैनी
बस आनंद ही आनंद
जिंदगी रही सरल सहज
अल्पविराम पहला आया
जिंदगी की इवारत में
जब पढने लिखने की उम्र हुई
गृह कार्य की चिंता हुई
कई बार क्रोध आया
जीवन नीरस सा लगा
बगावत का मन भी हुआ
जब तक इति उसकी न हुई
व्यस्तता कुछ अधिक बढ़ी
जब दायित्वों की झड़ी लगी
कर्तव्यों का भान हुआ
अर्धविराम तभी लगी
जिंदगी की रवानी में
दायित्वों
के बोझ तले
जिंदगी दबती गयी
समस्त कार्य पूर्ण किये
अभिलाषा भी शेष नहीं
जीने का मकसद पूर्ण हुआ
पूर्णता का अहसास हुआ
संतुष्ट भाव से खुद को सवारा
अब है इंतज़ार
जीवन की इवारत में
लगते पूर्णविराम का |
आशा