छूने लगी है  हर   सांस
 तुम्हारी धड़कनों को 
जीने का है मकसद क्या ?
 यह तक न सोच पाई |
 की इतनी जल्द्बाजी
 निर्णय लेने  में 
स्वप्नों में वह कल्पना भी
 बुरी नहीं लगती थी |
उससे उबर भी न पाई थी 
कि सच्चाई सामने आई 
पर  वास्तविकता से
 सामना इतना  सरल नहीं है 
 उस पर  यदि विचार करो  |
सच्चाई छुप नहीं पाती 
जब झूट का सहारा लेती 
तभी  तो सिर उठाती है 
उबाऊ जीवन के बोझ के  
आगे आगे चलती है |
किसी और के  मुखोटे को
अपने मुह पर  लगा कर  
उसे ही अपना मान कर 
 क्या बड़ी भूल कर बैठी है ?
आशा 




