27 अप्रैल, 2020

आइना




है वह आइना तेरा
हर अक्स का हिसाब रखता है
तू चाहे याद रखे न रखे
उसमें जीवंत बना रहता है
बिना उसकी अनुमति लिए
जब बाहर झाँकता है
चाहे कोई भी मुखौटा लगा ले
बेजान नजर आता है
यही तो है कमाल उसका
हर भाव की एक एक लकीर
उसमें उभर कर आती है
तू चाहे या न चाहे
मन की हर बात वहाँ पर
  तस्वीर सी छप जाती है
चाहे तू लाख छिपाए
तेरे मन के भावों की
परत परत खुल जाती है
दोनों हो अनुपूरक
एक दूसरे के बिना अधूरे
है वह आइना तेरे मन का
यह तू क्यूँ भूला |

आशा

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 27 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आईना दिखाती है आपकी यह रचना । सुंदर प्रस्तुति आदरणीया ।

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    1. सुप्रभात
      पुरुषोत्तम जी टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

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  3. मन का आइना ... जिस से कोई मुखौटा नहीं बच सकता ... उम्दा

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  4. आईना , जितना कमाल आईना खुद है उतना ही कमाल आपने उसका अक्स उभार कर रख दिया अपनी इन पंक्तियों में। मैं आपके ब्लॉग का 300वां अनुसरक बन कर जा रहा हूँ अब नियमत आता रहूंगा

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    1. मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है की आप मेरे ब्लॉग पर आए |उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद |टिप्पणी बहुत अच्छी लगी |

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  5. मौन रह कर सब सच कहता है आइना ...
    यही तो खासियत है उसकी ...

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  6. हर दिलकश चेहरा मुझे देखता जरूर है,
    दिवार पर लटका आइना जो हूँ मैं !

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