किसी के छद्म प्यार में 
मन उसका ऐसा उलझा   
कोई हल न सूझा अब कहाँ जाए 
दिल की सुने या मस्तिस्क की |
अब पछता रही है 
उसे वह समझ न पाई 
अब जान गई था वह एक छलावा
उस भूल पर कैसे पर्दा डाले |
मन बहुत दुखी हुआ है 
पैर पीछे नहीं लौटते 
अब कहीं की न रही 
यह किससे कहे |
जब पैर डगमगाए थे
किसी ने चेताया नहीं 
ज़रा भी समझाया नहीं 
डूबी जब पंक में किसी ने बचाया नहीं |
समय हाथ से फिसल गया
अब हाथ न आएगा 
नष्ट हुई वह किस हद तक 
 कोई भी जान न पाएगा | 
अपनी गलती का एहसास है उसे 
यह वह किस मुंह से कहे 
 अपने आप पर शर्मिन्दा है
यह भी नहीं कह पाती किसी से |
वह मन से बहुत  दुखी है 
यह भूल नहीं पाती पछताती है   
यही बात बारम्बार मन को सालती रहती
कोई न मिला जो उसे समझे समझाए |
आशा
जीवन में मिले कटु अनुभव ही सबसे बड़े पथ प्रदर्शक होते हैं ! उन्हीं से सबक ले लेना चाहिए ! मन की उथल पुथल की बढ़िया अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |