जीवन सुनहरी धूप सा
हरीतिमा पर छाता जाता
त्याग और समर्पण की
सौगात साथ में लाता |
साथ यदि इनका ना होता
वह अकारथ हो जाता
सदा असफल रहता
आत्म विश्वास न जग पाता |
माँ की ममता ,पिता का प्यार
होते सदा निस्वार्थ
वह त्याग ही तो है इनका
जो संतति को सक्षम बना
सफलता का मार्ग दिखाता |
भाव समर्पण का
प्रवल प्रभाव अपना छोड़ता
इसके वश में हो कर
पाषाण ह्रदय भी
मोम सा कोमल हो जाता
उमंग से भरता जाता |
उसी की तरंग में
जाने कितने रूप धरता
रंग रंगीली खुशियाँ लाता
जीवन सवरता जाता |
फिर जाने कब
बुझती मशाल सा मानव
धुंआ धुंआ हो जाता
ना जाने कहाँ
विलुप्त हो जाता |
जिन्दगी वह सुनहरी धूप है
जब आती है बहुत खुशी देती है
जब जाती है
बहुत उदास कर जाती है |
आशा
जिन्दगी वह सुनहरी धूप है
जवाब देंहटाएंजब आती है बहुत खुशी देती है
जब जाती है
बहुत उदास कर जाती है |
....सच...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...
धन्यवाद कैलाश जी
हटाएंआशा
भावपूर्ण!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंलाजबाब भावपूर्ण अभिव्यक्ति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : तस्वीर नही बदली
धन्यवाद टिप्पणी हेतु
हटाएंबुझती मशाल सा मानव
जवाब देंहटाएंधुंआ धुंआ हो जाता
ना जाने कहाँ
विलुप्त हो जाता |
जिन्दगी वह सुनहरी धूप है
जब आती है बहुत खुशी देती है
जब जाती है
बहुत उदास कर जाती है |--
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
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टिप्पणी हेतु आभार
हटाएंदार्शनिकता से ओतप्रोत बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति ! यही हर जीवन का सत्य है ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंआशा
खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी हेतु |
हटाएंआशा
बहुत सुंदर हाइकू
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआशा
आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 6 अगस्त से 10 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
जवाब देंहटाएंकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
दोनों स्थितियाँ अपने अनुभव दे जायेंगी - छुटकारा नहीं .
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