हम दौनों
नहीं दूर कभी
सदा
हम दोनो
पास पास रहे
कभी न रहे दूर
क्या यही नहीं हैं कमी
हैं दोषी हम दौनों
सोचता रहा मैं
मन में |
२- तुम से
कब कहा मैंने
मैं रहा पास तुम्हारे
झूठे आरोप लगाए हैं तुमने
यह कैसा न्याय तुम्हारा
कहाँ गलती रही
दौनों की |
३-एक छत
के नीचे रहना
सरल नहीं लगता है
विचार नहीं मिलते जब भी
होता तकरार का निवास
कलह प्रवेश करती
जीवन बेरंग
होता |
४- क्या यही
है मेरी कहानी
जीवन थमा नहीं है
उसे जिया भी नहीं है
किससे शिकायत करूं
इसका फलसफा
है यही |
५- तुम समझो
या न समझो
मेरा कर्तव्य पूर्ण हो
मंसूबे पूरे करने तो दो
यही है ख्याल मेरा
उससे दूरी कैसी
समझने दो
मुझे |
६-तुम जानो
या नहीं मानों
हो तुम सुन्दर सी
है नाजुक नर्म स्वभाव तुम्हारा
रहीं चंचल चपल बिंदास
हो मोहिनी सी
ख्याल मेरा
ऐसा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 05 जुलाई 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
Thanks for the information of my post
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रयास ! एक बार स्वयं इनका पुनर्वाचन करके देखें !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंबढ़िया सयाली छंद .
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