कितनी बार सोच विचार कियी
सही गलत का
आकलन करना चाहा  
पर  किसी निराकरण पर न पहुंची 
मन में
असंतोष लिए घूमती रही | 
कितनी बार
तुमसे कहना चाहा 
पूंछना भी चाहा
तुम्हारे मन में क्या चल रहा है 
 तुमसे भी सलाह लेनी चाही पर 
तुमने भी साथ
न दिया मेरा |
अब मैं किस
का इतजार करूं
अपने विचारों
पर मोहर लगाने के लिए 
जो मैं सोचती
हूँ क्या वह सही नहीं है 
या जरूरत है
और मंथन की उनके |
कभी सोचा न
था इतनी उलझ जाऊंगी 
अपने विचारों को रंग बिरंगे
शब्दों का लिवास पहना न पाऊँगी
न जाने क्या होगा अभी कुछ पक्का भी नहीं है |
हूँ अनिर्णय
की स्थिती में सुध बुध खो रही हूँ 
बीच भवर में
डूब रही  हूँ 
अब तो जीवन
बोझ हुआ है 
 भवसागर से कैसे पार उतर पाऊँगी |
आशा
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