स्वप्नों का आज कल
जीवन पर पड़ता
गहरा प्रभाव
यदि केवल दिल से सोचा
दिमाग से न काम लिया |
भावुक और
कमजोर लोग
बह जाते उस
बहाव में
कभी कभी बहाव में
अपना आपा भी
खो देते |
यहीं बातों
को तूल मिलता
हवा भी बढ़ावा
देती जन मत की
कभी विश्वास
भी उठ जाता
अपने सोच पर
से |
लगने लगता सारा
जग एक
फरेवों की दुकान सा
अब सुविचारों
पर से भी
दूर हटा मन मेरा |
वह कैसे जिए
खोखले
आदर्शों पर निर्भर
हो कर
जब कोई फल
नहीं मिलता
हो किसी प्रकार
का अच्छा या बुरा
मुझे कोई
फर्क नहीं पड़ता |
मन के जख्म
भरने का
एक ही साधन था स्वप्नों का
अब उसने भी
साथ छोड़ा
मेरी खुशियों
से बैर पाला |
जब जन्म लिया इस धरती पर
मरना भी है
यहीं
पञ्च तत्वों
में विलीन होना है
फिर माया मोह कैसा |
पूर्व जन्म
के कर्म फलों से भी
भ़ागा नहीं जा
सकता
यही सब सामने
है मेरे
शायद यही है
प्रारब्ध मेरा |
आशा
मन की कशमकश की सुन्दर अभिव्यक्ति ! स्वयं को किसी भी भ्रम में न रख कर एकनिष्ठ हो अपने लक्ष्य पर टिके रहने में ही जीवन की सार्थकता है !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार रवीन्द्र जी |
जवाब देंहटाएंपूर्व जन्म के कर्म फलों से भी
जवाब देंहटाएंभ़ागा नहीं जा सकता
यही सब सामने है मेरे
शायद यही है प्रारब्ध मेरा |
.. .. कभी-कभार ऐसा कुछ घटित होता है तो मानना पड़ता है कि शायद इसी को प्रारब्ध कहते हैं
Thanks for the comment
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