दिल से मसी बनाई है
विचारों तक उसे पहुंचाई
शब्दों की लेखिनी चुनी है
मन में छिपी भावनाओं के शब्द लिए |
छापे मन के पटल पर
फिर भी कहीं रही कमी
अपने शब्दों को आवाज देने में
अपने दिलवर को मनाने में |
दिल की मसी से लिखा है
अपने मन का सारा हाल
हुआ बेहाल किसी के समक्ष
अपने मन को खोल कर रखने में |
चाह रहा था कोई देखे उसे
पढ़े उसका मनन करे
फिर अपनी तरफ से
फैसले पर मोहर लगाए
खुद के विचार प्रस्तुत करे |
तभी तो निष्पक्ष निर्णय हो पाएगा
बिना लाग लपेट के फेसला हो पाएगा
वही निर्णय होगा मान्य मुझे
जिसमें किसी की बैसाखी न होगी साथ |
किसी की सलाह की गंध नही आएगी
अपने मन में क्या निर्णय किया
यह भी स्पष्ट हो जाएगा
तुम्हारे मन में क्या विष घुला है
यह किसकी शरारत है |
आशा
Thanks for the information of my post
जवाब देंहटाएंलो जी आ गए हम और सबसे पहले पढ़ भी ली रचना ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! भई वाह !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंबहुत ही सुन्दर।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंसुंदर रचना
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