उतार चढ़ाव जीवन के
इतना कमजोर कर देते हैं
मन मस्तिष्क बेकल हो जाता है
क्या हो रहा समझ से परे है |
घटनाओं का अम्बार लगा है
ऊंठ किस करवट बैठेगा मालूम नहीं
क्या कभी जिन्दगी की गाड़ी
सीधी पटरियों पर चल पाएगी |
यूं ही सडकों पर टप्पे खाता फिरूंगा
या कभी स्थाईत्व भी आएगा जीवन में
मेरे बेरंग जीवन में रंग कब भरेगा
यह उथलपुथल कब होगी समाप्य |
अब मैं बैठा हूँ इन्तजार में
तुमसे क्षमा मांगूं या कहने में चलूँ
तुम्हारे हाथों की कठपुतली बनूँ
या अपनी जिम्मेंदारिया पूर्ण करूं |
न जाने समझ पाने में तुम्हें
कहाँ भूल हुई मुझ से
तुम्हारे मन का सोच है कितना मैला
गहराई तक डस रहा है मुझे |
कैसे समस्याओं का हो निदान
जब पहल ही नहीं की तुमने
ना ही कभी मुझे समझीं
फिर इतने दिनों का साथ
एक ही पल में ही ठुकराया तुमने |
आशा
मार्मिक रचना ! कभी कभी इंसान जीवन में ऐसे दोराहे पर आ खडा होता है कि सही रास्ता चुनने में बड़ी दुविधा हो जाती है ! बढ़िया अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |