अपने मन के पापों को
किसी और पर मत थोपो
जब भी झांको अपने अन्दर
सही विचार को जन्म दो |
झूट सच में जब भी उलझोगे
खुद को ही हानि पहुँचाओगे
कभी समस्याओं से उभर न पाओगे
उलझ कर ही रह जाओगे |
जीवन दिखता है पहाड़ सा
पर कट जाता है क्षण भर में
क्या करना है क्या नहीं
इनमें ही उलझे रह जाओगे |
खुद पर इतना विश्वास रखो
अपने कर्तव्यों से पीछे नहीं हटो
अधिकार तुम्हारे हैं सुरक्षित
उनको कोई छीन नही सकता |
जिसने भी ऐसा कदम उठाया
उस पर भी ऐसा समय आएगा
चिंता न करो ईश्वर सब देख रहा
होनी में कुछ देर है अंधेर नहीं है |
जितनी गलतफैमियाँ पाली है
वे देर सवेर सभी सामने आएंगी
उसके मन को कष्ट पहुंचाएंगी
पर बीता हुआ कल लौट न पाएगा |
माना है वह गुणों की धनी
पर झूठा अहम भरा कण कण में
खुद को सर्वश्रेष्ठ समझती है
यही कमीं रही उसमें |
आशा
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 08 जुलाई 2022 को 'आँगन में रखी कुर्सियाँ अब धूप में तपती हैं' (चर्चा अंक 4484) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
बहुत ही सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंउम्दा ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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