09 जुलाई, 2022

मन की उथलपुथल


                               कितनी बार सोच विचार कियी

सही गलत का आकलन करना चाहा  

पर  किसी निराकरण पर न पहुंची

मन में असंतोष लिए घूमती रही |

कितनी बार तुमसे कहना चाहा

पूंछना भी चाहा तुम्हारे मन में क्या चल रहा है

 तुमसे भी सलाह लेनी चाही पर

तुमने भी साथ न दिया मेरा |

अब मैं किस का इतजार करूं

अपने विचारों पर मोहर लगाने के लिए

जो मैं सोचती हूँ क्या वह सही नहीं है

या जरूरत है और मंथन की उनके |

कभी सोचा न था इतनी उलझ जाऊंगी

अपने विचारों को रंग बिरंगे

 शब्दों का लिवास पहना न पाऊँगी 

न जाने क्या होगा अभी कुछ पक्का भी नहीं है |

हूँ अनिर्णय की स्थिती में सुध बुध खो रही हूँ

बीच भवर में डूब रही  हूँ

अब तो जीवन बोझ हुआ है

 भवसागर से कैसे पार उतर पाऊँगी |

आशा    


10 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-7-22) को "बदलते समय.....कच्चे रिश्ते...". (चर्चा अंक 4486) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा


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  2. अनिर्णय की स्थिति बड़ी दुखदायी होती है व्यक्ति की सक्रियताको कुण्ठित कर देती है .

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  3. सुंदर काव्यमय प्रस्तुति के माध्यम से मन की उथल-पुथल को व्यक्त करने के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई। जीवन में ऐसे क्षण भी आते हैं। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

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  4. दिल की उथल पुथल ही सब बैचनी की वजह है। सुंदर रचना

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  5. शीर्षक की वर्तनी सुधार लें ! मन की संशयपूर्ण स्थिति की सशक्त अभिव्यक्ति !

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