सुबह से शाम तक काम ही काम
ज़रा भी नहीं आराम जिसके लिए तरसती थी
मैं सोचती थी क्या यही है जिन्दगी ?
फिर सोच से समझोता कर लेती थी
यही जिन्दगी की असलियत थी
एक अजीब सी बेचैनी होती थी
सारे दिन काम ही काम
जब थक हार कर बैठ जाती थी
पीछे से किसी काम के लिए आवाज आती थी
अरे यह कार्य तो शेष रहा कब
तक समाप्त होगा
मैंने समझ लिया था काम ही है जिन्दगी
काम सभी को होता प्यारा
कामचोर सदा मात खाता
जब से कोरोना का हुआ प्रकोप
घर में रहना हुआ अनिवार्य
बहुत बचैनी होती है क्या काम करूं
कैसे समय व्यतीत करूँ
अब समझ पाई हूँ बिना काम किये
जीवन कितना कष्टकर होता है
क्या है आवश्यकता निष्क्रीय
पड़े रहने की
अब मुझे आराम अच्छा नहीं लगता
खोजती रहती हूँ कैसे समय बिताऊँ
लेटे बैठे चैन नहीं पड़ता
आराम का भूत दिमाग से उतरा है
बिना काम किये धर में रहना
सजा सा लगाने लगा है
देश हित को ख्याल में रख लगता
है
मैंने भी कुछ काम किया है
देश का साथ दे कर लौक डाउन कर
सरकार के हाथ मजबूत कर |
आशा
आशा
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
हटाएंसार्थक चिंतन ! आजकल हर भारतवासी इसी सोच में डूबा है लॉक डाउन के वक्त का कैसे सदुपयोग करें !
जवाब देंहटाएंसाधना धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएं