कोहरे की घनी चादर
यह ठिठुरन और
यह ठिठुरन और
ठंडी हवा की चुभन 
हम महसूस करते हैं 
सब नहीं 
शिशिर ऋतु का अहसास 
सुबह होते हुए भी 
रात के अँधेरे का अहसास 
हमें होता है 
सब को नहीं 
आगे कदम बढ़ते जाते हैं 
सड़क किनारे अलाव जलाये 
कुछ बच्चे बैठे  
कदम ठिठक जाते हैं 
आँखों के इशारे 
उन्हें मौन निमंत्रण देते  
  शिशिर ऋतु
के मौसम से 
हो कर अनजान 
तुम क्यूँ बैठे हो यहाँ 
ऐसा क्या खाते हो 
जो इसे सहन कर पाते हो 
उत्तर बहुत स्पष्ट था 
रूखी रोटी और नमक मिर्च 
प्रगतिशील देश के 
आने वाले कर्णधार 
ये नौनिहाल 
क्या कल तक जी पायेंगे 
दूसरा सबेरा देख पायेंगे 
मन में यह विचार उठा 
पर यह मेरा भ्रम था 
ऐसा कुछ भी नहीं हुआ  
जैसा मैंने सोचा था 
अगले दिन भी 
कुछ देर से ही सही 
कदम उस ओर ही बढ़े 
सब को सुबह चहकते पाया 
लगा मौसम से सामंजस्य
उन्होंने कर लिया है 
धीरे से एक उत्तर भी उछाला 
कैसा मौसम कैसी ठिठुरन 
अभी काम पर जाना है 
सुन कर यह उत्तर
खुद को अपाहिज सा पाया 
असहज सा पाया 
इतने सारे गर्म कपड़ों से 
तन दाब ढाँक बाहर निकले 
फिर भी ठण्ड से 
स्वयं को ठिठुरते पाया |
आशा 

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12.12.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3547 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सूचना हेतु आभार सर |
हटाएंसच है निर्धनता का जिजीविषा और उत्साह से कोई बैर नहीं ! बच्चों में हमेशा जोश होता है ! बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना |
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