इंसान वही रहता है
बस हालात बदल जाते हैं |
बस हालात बदल जाते हैं |
बचपन में जब था
आश्रित माता पिता पर
आश्रित माता पिता पर
हर कार्य के लिए
निर्भर
हुआ करता था उन पर |
हुआ करता था उन पर |
वय के साथ बढ़ी
जब से आत्मनिर्भरता
जब से आत्मनिर्भरता
बदला सोच का दायरा
हर बात में परिवर्तन आया |
हर बात में परिवर्तन आया |
कभी जो अत्यंत प्रिय हुआ करते थे
हुई दूरियां उनसे
हुई दूरियां उनसे
अधिक प्रिय गैर लगने
लगे
अब अपने हुए पराए |
अब अपने हुए पराए |
बहुत सोचा विचारा
पर कारण तक पहुँच न पाया
पर कारण तक पहुँच न पाया
समझ ना पाया ऐसा हुआ क्या ?
क्या किशोरावस्था हावी हुई ?
क्या किशोरावस्था हावी हुई ?
स्वभाव में उग्रता
आई
अपनों की सलाह रास न आई
अपनों की सलाह रास न आई
यौवन आते ही बढ़ा
आकर्षण
बड़े प्रलोभनों ने भरमाया |
बड़े प्रलोभनों ने भरमाया |
माया मोह में फंसता
गया
मन स्थिर ना रह पाया
मन स्थिर ना रह पाया
जीवन के अंतिम पड़ाव
पर
मन मस्तिष्क में बैराग्य आया|
मन मस्तिष्क में बैराग्य आया|
हर कार्य ईश्वर पर छोड़ा
मन के अन्दर झांका
मन के अन्दर झांका
अपने आप को
आत्मनिरीक्षण करता पाया |
थामाँ आस्था का आँचल
आत्मनिरीक्षण करता पाया |
थामाँ आस्था का आँचल
कसौटी पर जब परखा खुदको
समय के साथ वह खुद
नहीं बदलता
हालात बदल देते उसको |
हालात बदल देते उसको |
आशा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5.12.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3560 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार सर |
बिलकुल सत्य वचन ! इंसान वही रहता है समय और परिस्थितियाँ बदल जाती हैं ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |
सत्य ,सुंदर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद अनीता जी |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद ओंकार जी |
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
९ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,
सुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार श्वेता जी |
बहुत सुन्दर सटीक सार्थक कृति...।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधा जी टिप्पणी हेतु |
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