मिलते हज़ारों में 
दो चार अनुयायी सत्य के 
सत्यप्रेमी यदा कदा ही मिल पाते 
वे पीछे मुड़ कर नहीं देखते !
सदाचरण में होते लिप्त 
सद्गुणियों से शिक्षा ले 
उनका ही अनुसरण करते 
होते प्रशंसा के पात्र ! 
लेकिन असत्य प्रेमियों की भी 
इस जगत में कमी नहीं 
अवगुणों की माला पहने 
शीश तक न झुकाते 
अधिक उछल कर चले 
वैसे ही उनके मित्र मिलते 
लाज नहीं आती उन्हें 
किसी भी कुकृत्य में !
भीड़ अनुयाइयों की 
चतुरंगी सेना सी बढ़ती 
कब कहाँ वार करेगी 
जानती नहीं 
उस राह पर क्या होगा 
उसका अंजाम 
इतना भी पहचानती नहीं !
दुविधा में मन है विचलित 
सोचता है किधर जाए 
दे सत्य का साथ या 
असत्य की सेना से जुड़ जाए 
जीवन सुख से बीते 
या दुखों की दूकान लगे 
ज़िंदगी तो कट ही जाती है 
किसी एक राह पर बढ़ती जाती है  
परिणाम जो भी हो 
वर्तमान की सरिता के बहाव में 
कैसी भी समस्या हो 
उनसे निपट लेती है ! 
आशा सक्सेना 

ये प्रश्न तो हमेशा ही रहते हैं दिल में ...
जवाब देंहटाएंऔर समय निकल ही जाता है ...
सुप्रभात
हटाएंधन्यवाद नासवा जी टिपण्णी के लिए |
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-12-2019) को "आप अच्छा-बुरा कर्म तो जान लो" (चर्चा अंक-3539) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चिंताएं समस्याएं जीवन में पानी के बुलबुलों की तरह पैदा होती हैं और स्वत: ही समाप्त भी हो जाती हैं ! इसलिए किसी दुविधा में ना पड़ कर उसीका साथ देना चाहिए जिसके लिए आपका मन करे ! आप सत्यानुरागी हैं या असत्यानुरागी यह आपकी सोच पर निर्भर करता है !
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