लगते बहुत खोखले
मन माफिक बात न होने पर
वह झूठे तेवर दिखाता
अपने को भूल जाता |
है किस्सा नहीं अधिक पुराना
फिर भी जब याद आता
मन विचलित कर जाता
सोचने को बाध्य करता
ऐसे रिश्तों की होती है
अहमियत क्या ?
है एक गाँव छोटा सा
आया वहां एक जामाता
सब आगे पीछे घूम रहे
नहीं थकते कुंवर जी कहते
कटु बचन भी सह कर
उसके नखरे उठा रहे |
फिर भी अकड़
उसकी भुट्टे सी
कम होने का नाम न लेती
मीठे बोल नहीं जानता
तीखा सा प्रहार करता
रखलो अपनी बिटिया को
अब मैं नहीं आने वाला |
बेटी का कोइ दोष तो होता
तब बात में दम होता
वह तो युक्ति खोज रहा
बिना बात तंग करने की
अपनी शान बताने की
मनुहार करवाने की |
क्यूँ कि है वह मान्य
सभी अब आधीन उसके
है यही सोच उसका
मर्जी सर्वोपरी उसकी
क्यूँ कि है वह
उस गाँव का जमाई |
आशा
हम ही लोग बैठते हैं इतना सिर पर ....
जवाब देंहटाएंक्या बात वाह!
जवाब देंहटाएंभई वाह ! लेकिन अब ऐसे जमाइयों के दिन लद चुके हैं ! ऐसे बद दिमाग लोगों को कोई पसंद नहीं करता और अब तो लड़कियाँ भी बोल्ड हो गयी हैं और ऐसे अकड़बाजों को अच्छी तरह से सबक सिखाना सीख गयी हैं ! मजेदार रचना !
जवाब देंहटाएंपुराने समय में तो ऐसा बहुत होता था..
जवाब देंहटाएंअब भी है कोई खास जमाई साहब..
बेहतरीन रचना..
:-)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
latest postएक बार फिर आ जाओ कृष्ण।
ये सब पहले होता था अब नहीं ,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : फूल बिछा न सको
मैं आप सब की बातों से सहमत हूँ पर यह किस्सा कुछ दिन पहले का ही है
जवाब देंहटाएंजब उस गाँव में एक जमाई राजा आए थे और लोगों ने उनके बड़े नखरे उठाए थे |
आशा
bahut badhiya aaz ke samay me bhi eise jamai hote hai :) ?
जवाब देंहटाएंकमाल है भाई !
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति .. अब शहरों में यह सब नहीं देखने को मिलता . इसका भी अपना एक सुख था ..
जवाब देंहटाएंआशा जी अभी ऐसे जमाई भी मिल जाते हैं , बचपन से बहुत सरे देखते चली आ रही हूँ लेकिन वे सब वो होते हैं जिनके घर में खुद जमाई नहीं होते हैं।
जवाब देंहटाएंधीरे धीरे बदलाव आ रहा है ... अपने अंदर ये बदलाव लाना चाहिए ... फिर कोई सर पे नहीं बैठ सकता ...
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु धन्यवाद |
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