बढ़ती ठण्ड छाई धुंध
कुछ नजर नहीं आता
इंतज़ार धूप का होता
लो छट गया कोहरा
खिली सुनहरी धूप
झील में शिकारे
जल में अक्स उनके
साथ साथ चलते
मोल भाव करते
तोहफे खरीदते
सुकून का अहसास लिए
प्रसन्न वदन घूमते
आनंद नौका बिहार का लेते
मृदुभाषी सरल चित्त
तत्पर सहायता के लिए
जातपात से दूर यहाँ
इंसानियत से भरपूर
जमीन से जुड़े लोग
सोचने को बाध्य करते
जैसा सौन्दर्य प्रकृति का
बर्फीली पहाड़ी चोटियाँ का
वैसा सा ही रूप दीखता
यहाँ के रहवासियों का
झील शिकारे हरियाली
मन कहता रुको ठहरो
शायद जन्नत यहीं है
यहीं है ,यहीं है |
बहुत सुन्दर , आपके अनमोल शब्दों ने चार चाँद लगा दिए , बहुत बढ़िया व मनमोहक रचना , धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन --: प्रश्न ? उत्तर -- भाग - ६
" जै श्री हरि: "
टिप्पणी हेतु धन्यवाद आशीष जी
हटाएंबढ़िया-
जवाब देंहटाएंआभार आदरेया -
धन्यवाद रविकर जी |
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (17-11-2013) को "लख बधाईयाँ" (चर्चा मंचःअंक-1432) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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गुरू नानक जयन्ती, कार्तिक पूर्णिमा (गंगास्नान) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूचना हेतु आभार शास्त्री जी |
हटाएंआशा
प्रकृति कि खूबसूरती जहाँ है ,जन्नत वहीँ है ,बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मन्दिर या विकास ?
नई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
धन्यवाद कालीपद जी |
हटाएंprakruti ki khoobsurati ka sundar chitran ..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कविता जी |
हटाएंबिलकुल सही कहा है आपने ..जन्नत तो यहीं है ..वाकई जमीन से जुडें हैं यहाँ लोग ..सादर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद डाक्टर साहब
हटाएंवाकई जन्नत यहीं है और भाग्यशाली हैं वे लोग जो इस जन्नत का दीदार कर पाते हैं ! सजीव वर्णन के साथ मनभावन प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद साधना |
हटाएंbahut badhiya
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी हेतु |
हटाएंसही है जब प्रकृति के साथ वहाँ के निवासियों के चित्त की खूबसूरती का मेल हो जाता है, तो लगता है स्वर्ग जमीं पर उतर आया हो .... सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संध्या जी |
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