04 मार्च, 2011

कच्ची उम्र सुनहरे सपने

सुन्दर गुमसुम गुड़िया सी
छवि उसकी आकर्षित करती
कोई कमी उसमें ना देखी
आत्म विश्वास से भरी रहती |
सोचती है समझती है
पर सच सुनना नहीं चाहती
मन में छुपे कई राजों को
किसी से बाँटना नहीं चाहती |
कच्ची उम्र सुनहरे सपने
हर पल सपनों में ही जीती
रहती ककून में बंद
रेशम के कीड़े सी |
अपने को किया
सीमित जालक में
अंतर्द्वंद में घिरी हुई वह
आत्मकेंद्रित हो गयी है |
है उम्र ही कुछ ऐसी
खोई रह्ती कल्पनाओं में
सत्य नहीं जान पाती
है कौन अपना पहचान नहीं पाती |
मुखौटे के है पीछे क्या
यही अगर पहचान पाती
भेद पराये अपने का
स्पष्ट उसे नजर आता |
जो निखार व्यक्तित्व का
था अपेक्षित उससे
होने लगा है अवरुद्ध सा
यह भी वह समझ पाती |
सब बोझ समझ बैठे उसको
यह भूल गये
वे भी कभी गुजरे होंगे
कच्ची उम्र के इस दौर से |
पैर यदि बहकने भी लगे
दिवा स्वप्नों से
अपने आप सम्हल जायेंगे
यह दौर भी गुजर जायेगा |
ठहराव व्यक्तित्व में होगा
और सफलता कदमों में
योग्यता उसकी रंग लायेगी
वह पिछड़ नहीं पायेगी |

आशा










13 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर गुमसुम गुडिया सी
    छवि उसकी आकर्षित करती
    कोई कमी उसमें ना देखी
    आत्म विश्वास से भरी रहती |
    bahut apni si kahani , apni si gudiyaa

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  2. ठहराव व्यक्तित्व में होगा
    और सफलता कदमों में
    योग्यता उसकी रंग लाएगी
    वह पिछड नहीं पाएगी |
    बहुत सुन्दर भाव की अभिव्यक्ति, बधाई

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  3. सुंदर सन्देश देती बढ़िया प्रस्तुती
    बधाई

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  4. सोचती है समझती है
    पर सच सुनना नहीं चाहती
    मन में छुपे कई राजों को
    किसी से बांटना नहीं चाहती |
    कच्ची उम्र सुनहरे सपने
    हर पल सपनों में ही जीती
    रहती ककून में बंद
    रेशम के कीड़े सी |
    --
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  5. बहुत सुंदर और गहरे भाव लिए है रचना ....

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  6. किशोर -मन को समझना आसान नहीं है
    सुन्दर भाव

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  7. गुडिया के माध्यम से बालमन की बहुत सुन्दर झांकी दिखाई है आपने ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  8. जितने सुंदर शब्दों से आपने इसे सजाया है उतने ही सुंदर इस कविता के भाव है। आभार।

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  9. कच्ची उम्र सुनहरे सपने
    हर पल सपनों में ही जीती
    रहती ककून में बंद
    रेशम के कीड़े सी |

    रेशम के कीड़े सी... सुन्दर प्रतीक ...
    भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।

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  10. बहुत अच्छी लगी आपकी कविता . ......बधाई.

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  11. पैर यदि बहकने भी लगे
    दिवा स्वप्नों से
    अपने आप सम्हल जाएंगे
    यह दौर भी गुजर जाएगा

    बहुत सुन्दर सार्थक और भावपूर्ण प्रस्तुति..

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुंदर और गहरे भाव लिए है रचना ....

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