30 अप्रैल, 2011

बर्फ का लड्डू


घंटी का स्वर
पहचानी आवाज

सड़क के उस पार
करती आकृष्ट उसे |
स्वर कान में पड़ते ही
उठते कदम उस ओर
रँग बिरंगे झम्मक लड्डू
लगते गुणों क़ी खान |
जल्दी से कदम बढाए
अगर समय पर
पहुंच ना पाए
लुट जाएगा माल |
पैसे की कोइ बात नहीं
आज नहीं
तो कल दे देना
पर ऐसा अवसर ना खोना |
ललक बर्फ के लड्डू की
बचत गुल्लक की
ले उडी
पर जीभ हुई लालम लाल |
फिर होने लगा धमाल
क्यूँ की
गर्मी की छुट्टी भी आई
ओर परिक्षा हुई समाप्त |
आशा




6 टिप्‍पणियां:

  1. र जीभ हुई लालम लाल |
    फिर होने लगा धमाल
    क्यूँ की
    गर्मी की छुट्टी भी आई
    ओर परिक्षा हुई समाप्त |
    bahut sundar bhavabhivyakti.badhai.

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  2. वाह ! बर्फ के लड्डू का शीतल मधुर अहसास मुँह में घुल गया ! सच में बच्चों के चेहरों पर घंटी की आवाज़ सुनते ही जो खुशी आ जाती है वह अवर्णनीय है ! सुन्दर रचना ! बधाई !

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  3. बहुत खूबसूरती से किया है वर्णन बर्फ के लड्डू का -
    और स्वागत बच्चों की गर्मियों की छुट्टी का ...!!

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  4. बहुत खूबसूरत कविता... गर्मी में शीतलता प्रदान कर गई यह कविता..

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  5. बच्चों की ललक देख कर इस घटना को लिकने की इच्छा जाग्रत हुई थी
    आपसब का मेरे ब्लॉग पर स्वागत है |इसी प्रकार स्नेह
    बनाए रखिये |एक बार फिर से आप लोगों का आभार
    आशा

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  6. Aapne mujhe apne bachpan ke dino ki yaad dila di aasha ji.Dhoop me ghanti wale ke peeche barf ki chuski ke liye bhagta main nange paanv...
    dhanyavad aisi sundar kavya rachna ke liye jo jeevan ki sacchayiyon ke kareeb hai...

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