20 मई, 2011

व्यथा दो राहों की


दो राहें अनवरत
सतत आगे बढ़तीं
मिलतीं चौराहे पर
अपनी व्यथा बांटने के लिए |
लगती बहुत आहत
तपते सूर्य की गर्मीं से
बेहाल हैं ,झुलस रही हैं
क्यूँ कि आसपास के
वृक्ष जो कट गए हैं |
छाँव का नामोंनिशान नहीं है
ऊपर से आना जाना
भारी वाहनों का
काँप जाती हैं वे
उनकी बेरहम गति से |
अंतस में हुए गर्त
कारण बनते
दुर्घटनाओं के
लेते परीक्षा उनके धैर्य की |
पर वे हैं कहाँ दोषी
अपराधी तो वे हैं
जिनने उन्हें बनाया है |
वे तो जूझ रही है
अनेकों समस्याओं से
परीक्षा दे रही है
अपने धैर्य की |
कभी तो कोई तरस खाएगा
उनके किनारे पेड़ लगाएगा
हरियाली जब होगी
तपते सूरज से
कुछ तो राहत मिलेगी|
आशा


11 टिप्‍पणियां:

  1. एक सार्थक सन्देश देती बहुत सुन्दर प्रस्तुति..आभार

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  2. aapki is rachna me bahut mahatvpoorn sandesh chipa hai.ped lagao hariyali bachaao.bahut achchi rachna.

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  3. तपते सूर्य की गर्मीं से
    बेहाल हैं ,झुलस रही हैं
    क्यूँ कि आसपास के
    वृक्ष जो कट गए हैं


    सार्थक सन्देश बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. EK PED TUM LAGAO EK PED HUM LAGAYEN, IS UJADTE CHAMAN ME PHIR SE HARIYALI LAYE. . . . IS RACHNA KO PADHKAR ME TO YAHI KAHUNGA. . .
    JAI HIND JAI BHARAT

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  5. सड़क के माध्यम से वृक्षों के संरक्षण का बहुत सार्थक संदेश दिया है आपने ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई !

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  6. एक सार्थक सन्देश देती बहुत सुन्दर प्रस्तुति|

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  7. मैं साधना वैद जी की बात से सहमत हूँ| पर्यावरण को ले कर आप का चिंतन अनुकरणीय है|

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  8. आशा जी,आपकी हरियाली की आशा से मन 'हरिया' गया है.काश हम हर राह को हरियाली से संवार दें.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,नई पोस्ट जारी की है.

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  9. सडकों को भी और इन्सानों को भी राहत मिलेगी

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  10. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार
    ....बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई स्वीकार करें !

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