है जिंदगी एक छलावा
पल पल रंग बदलती है
है जटिल स्वप्न सी
कभी स्थिर नहीं रहती |
जीवन से सीख बहुत पाई
कई बार मात भी खाई
यहाँ अग्नि परीक्षा भी
कोई यश न दे पाई |
अस्थिरता के इस जालक में
फँसता गया ,धँसता गया
असफलता ही हाथ लगी
कभी उबर नहीं पाया |
रंग बदलती यह जिंदगी
मुझे रास नहीं आती
जो सोचा कभी न हुआ
स्वप्न बन कर रह गया |
छलावा ही छलावा
सभी ओर नज़र आया
इससे कैसे बच पाऊँ
विकल्प नज़र नहीं आया |
आशा
पल पल रंग बदलती है
है जटिल स्वप्न सी
कभी स्थिर नहीं रहती |
जीवन से सीख बहुत पाई
कई बार मात भी खाई
यहाँ अग्नि परीक्षा भी
कोई यश न दे पाई |
अस्थिरता के इस जालक में
फँसता गया ,धँसता गया
असफलता ही हाथ लगी
कभी उबर नहीं पाया |
रंग बदलती यह जिंदगी
मुझे रास नहीं आती
जो सोचा कभी न हुआ
स्वप्न बन कर रह गया |
छलावा ही छलावा
सभी ओर नज़र आया
इससे कैसे बच पाऊँ
विकल्प नज़र नहीं आया |
आशा
उत्तम प्रस्तुति ! यह कदाचित् प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का सत्य है ! छलावा भी जीवन के विविध रंगों में से एक रंग है !
जवाब देंहटाएंकभी न कभी यही विचार हर इंसान के मन में आते ही हैं ....मन की टीस की सफल अभिव्यक्ति है आपकी रचना ....
जवाब देंहटाएंविकल्प शायद है भी नहीं...!
जवाब देंहटाएंजीवन है तो छलावे भी हैं!
बेहतरीन भावमय करते शब्दों का संगम ।
जवाब देंहटाएंआशा जी,
जवाब देंहटाएंछलावा के अतिरिक्त जिन्दगी और हो भी क्या सकती है......
इस भ्रम में फंसे हुये सच को सामने लाती हुई कविता।
आप उज्जैन से हैं, वहाँ मैंने अपनी इंजिनियरिंग का पहला पाठ पढ़ा था।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
छलावा ही छलावा ही
जवाब देंहटाएंसभी ओर नजर आया
इससे कैसे बच पाऊं
विकल्प नजर नहीं आया |
....सच में ज़िंदगी एक छलावा ही है और इससे बचने का कोई विकल्प नहीं....बहुत सटीक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
http://batenkuchhdilkee.blogspot.com/2011/11/blog-post.html
जीवन से सीख बहुत पाई
जवाब देंहटाएंकई बार मात भी खाई
ekdam sachchi kavita likhi hain......bahot achchi lagi.
इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
कल 26/11/2011 आपकी यह पोस्ट की हलचल नयी पुरानी हलचल पर हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
विकल्प तो शायद कुछ नहीं है क्यूंकि शायद ज़िंदगी इस ही को कहते हैं एक आम ज़िंदगी के रंगो को दर्शाती बेहतरीन अभिव्यक्ति ...समय मिले कभी तो ज़रूर आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है आशा जी :-)
जवाब देंहटाएंufffffff......ye jindagi
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुती....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंये रोशनी है हकीकत में एक छल लोगों
जवाब देंहटाएंकि जैसे जल में झलकता हुआ महल लोगों --दुष्यंत
सितारे सानज़र आता है ऊपर से जहाँ पानी
मैं खुशफहमी के उस गहरे कुँये मे कब नहीं उतरा --कतील शिफाई
है जिंदगी एक छलावा
पल पल रंग बदलती है...... सही कहा हैबिल्कुल आशा दीदी !!
उत्कृष्ट रचना...
जवाब देंहटाएंसादर...
जीवन भर छलावे के भ्रम में ही रहते हैं ..सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह कितनी सरलता से कह दी आपने गूढ बात
जवाब देंहटाएंnice poem
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है!!!
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