जपते माला गुरु बनाते
नीति धर्म की बातें करते
पर आत्मसात न कर पाते
सब से वंचित रह जाते |
संचित पूंजी भी चुक जाती
व्यर्थ के आडम्बरों में
बातें यूँही रह जातीं
पुस्तकों के पन्नों में |
है ज्ञान अधूरा ,ध्यान अधूरा
जीवन संग्राम अधूरा
फिर भी सचेत न हो पाते
इधर उधर भटकते रहते
कस्तूरी मृग से वन में
अस्थिर मन की चंचलता
चोला आधुनिकता का
अवधान केंद्रित नहीं रहता
रह जाते दूर सभी से
खाली हाथ विदा लेते
इस नश्वर संसार से |
आशा
आशा जी ...संसार का नियम है ...कि खाली आए थे और खाली ही जायंगे ...
जवाब देंहटाएंहां अपने विचार और कुछ बाते ऐसी है जो ..यही पीछे ..हमको छोड़ के जनि हैं ...जिस से बहुत तो नहीं ...पर कुछ लोगो की बातों में हम भी जिन्दा रहेगे
आडम्बरों को बताती अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंasal gyaan ko chod har koi idhar udhar bhag raha hain
बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंगहरे भाव।
जवाब देंहटाएंगहन चिंतन से भरपूर एक सार्थक रचना ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 02-02 -20 12 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज...गम भुलाने के बहाने कुछ न कुछ पीते हैं सब .
सुन्दर रचना के लिए मेरे पास कोई सशब्द नहीं..बस मौन ही
जवाब देंहटाएंआडंबरों के बारे में बताती सार्थक रचना ... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंhttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
बहुत सुंदर भाव ...
जवाब देंहटाएंप्रभावित करती रचना ...
खाली हाथ आये थे खाली हाथ जाना है ... गहन चिंतन... आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन , बधाई.
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