30 अप्रैल, 2012

जो मैं भी समझ ना पाया

मनचाहा कह ना पाया 
जो कहा हो ना पाया 
जो भी हुआ 
पचा  ना पाया 
हुए  विद्रोह के स्वर प्रस्फुटित 
वे सारे वार भी 
झेल  ना पाया
किसी ने   मेरा
साथ ना दिया 
सिरे से नकार दिया 
तब धीरे से 
अनकही बातें मन की 
उजागर होने लगीं 
लोगों की समझ से परे 
कई विचार 
उलझे से उपजे 
अन्तर्निहित रहस्य तब भी 
प्रगट नहीं कर पाया 
गहन चिंतन  में खोया 
अपने में सिमट गया 
सार नहीं जब कोई निकला 
अंतर्मुखी हो गया 
लोगों का जब ध्यान गया 
उन सारी बातों पर सोचा 
किसी हद तक उन्हें समझा 
जो मैं भी ना  समझ पाया |
आशा



9 टिप्‍पणियां:

  1. लोगों का जब ध्यान गया
    उन सारी बातों पर सोचा
    किसी हद तक उन्हें समझा
    जो मैं भी ना समझ पाया |

    बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन पोस्ट

    MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....

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  2. बेहतरीन लिखी हैं आंटी


    सादर

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  3. बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

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  4. मन के भावों की अच्छी प्रस्तुति ! बहुत बढ़िया !

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  5. मन के भावो को शब्दों में उतर दिया आपने.... बहुत खुबसूरत.

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  6. मन के भावो कि बहूत हि सुंदर अभिव्यक्ती.....

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  7. bahut hi sundar aur gahrai mai likha hai aapne. Aisa hi likhte rahe Kuchh painee aur tikhi kalam ke sang jo aaj ki yuvaa peedhi ke hriday mai sidhi ootar sake.

    Radhe Radhe

    जवाब देंहटाएं

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