जो चाहा जैसा चाहा जितना चाहा पाया पर प्यार भरा दिल न पाया कितना सताया | ममता की मूरत दिखती हो पर हो नहीं जाने क्या सोचती हो मन समझ न पाया | यह व्यवहार तुम्हारा मन को दुखित कर जाता दोहरा वर्ताव किस लिए आज तक जान न पाया | आशा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...! -- आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (15-02-2014) को "शजर पर एक ही पत्ता बचा है" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1524 में "अद्यतन लिंक" पर भी है! -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- अलविदा प्रेमदिवस। हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन सुंदर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: पिता
धन्यवाद सर |
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जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अब मृत परिजनों से भी हो सकेगी वीडियो चैट - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सूचना हेतु धन्यवाद सर |
हटाएंगूढ़ पहेली है।
जवाब देंहटाएंलगता तो ऐसा ही है |टिप्पणी हेतु धन्यवाद
हटाएंमन परिवर्तनशील है ,उसे जब तक समझो तब तक वह बदल जाता है ...रहसयमय है NEW POST बनो धरती का हमराज !
जवाब देंहटाएंमन में होते परिवर्तन यदि मुखौटे के पीछे छिप जाएं तब बहुत कष्ट होता है |
हटाएंPrem hai to nazar bhi ana chahiye ..
जवाब देंहटाएंसत्य कहा आपने |
हटाएंबेहतरीन ......
जवाब देंहटाएंधन्यवाद निवेदिता जी टिप्पणी हेतु |
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (15-02-2014) को "शजर पर एक ही पत्ता बचा है" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1524 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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अलविदा प्रेमदिवस।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूचना हेतु धन्यवाद सर
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी |
हटाएंशानदार रचना ! बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद |
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