09 मार्च, 2014

होली



वही अवीर वही गुलाल
हंसी खुशी और खुमार
बस चेहरे बदल गए हैं
होली के अर्थ बदल गए हैं |
होली तो होली है
रंग में सभी लाल
पर कुछ फर्क हुआ है
रिश्ते बदल गए हैं |
हर वर्ष बड़े उत्साह से
दहन होलिका का करते
खेली जाती होली
ओ मेरे हमजोली |
गले मिलते फाग गाते
चंग की थाप पर
ठुमके लगाते मीठा खाते 
बैर भाव  भूल जाते |
ना बड़ा ना छोटा कोई
समभाव मन में रहता
तन मन रंगता जाता
मन का  कलुष  फिर भी 
दूर न हो पाता |
आशा

18 टिप्‍पणियां:

  1. इंसान की फ़ितरत बदलती जा रही है -किसी भी त्यौहार का रूप अब पहलेवाला कहाँ रहा है !

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तर
    1. टिप्पणी लेखन को बल देती हैं |धन्यवाद सर |

      हटाएं
  3. बहुत सुन्दर रचना ! आपने होली का मूड बना दिया ! रंगों के इस पर्व पर हार्दिक शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (10-03-2014) को आज की अभिव्यक्ति; चर्चा मंच 1547 पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर और समसामयिक रचना ....रंगोत्सव की अगवानी करती सी ......सच ही
    पहले सा अपनापन न जाने कहाँ खोगया .....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपने बहुत सही कहा है अब त्यौहार त्यौहार नहीं लगते |

      हटाएं
  6. सामयिक ... सब कुछ बदल रहा है ... पर ये बदलाव हम से है ... त्योहारों में तो कुछ कमी नहीं ...

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: