अर्श से फर्श तक
निगाहें नहीं ठहर
पातीं
प्रकृति नटी ने
गलीचा बिछाया
मन मोहक रंगों से भरा|
निगाहें नहीं ठहरती जिस पर |
बहुत महनत लगी होगी
उसे बनाने में
चुन चुन कर धागे रंगवाए थे
मन पसंद रंगों से सजाए थे
|
प्यारा सा नमूना चुना था
इतना विशाल गलीचा बनाने को
नीले ,हरे रंग के ऊपर उठते चटक
रंग
देखते ही मन उसे पाना
चाहता |
पर सब की ऐसी किस्मत
कहाँ
भाग्यशाली ही भोग पाते
हैं
ऐसे गलीचे पर सुबह सबेरे
घूमने का आनंद
कम को ही नसीब हो पाता
है |
यह सुख वही पाते हैं
जो प्रकृति के बहुत करीब
होते हैं
उसे सहेज कर रख पाते हैं
|
आशा
बहुत ही सुन्दर रचना ! भाग्यशाली लोग ही कुदरत की इस खूबसूरती का आनंद उठा पाते हैं ! बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 23 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23-05-19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3344 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सूचना हेतु आभार सर |
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 22/05/2019 की बुलेटिन, " EVM पर निशाना किस लिए - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (24-05-2019) को "आम होती बदजुबानी मुल्क में" (चर्चा अंक- 3345) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
हटाएंसूचना के लिए धन्यवाद सर |
बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए अनिता जी |
प्राकृतिक सौन्दर्य पर केन्द्रित सुन्दर कविता । सराहनीय अभिव्यक्ति । आभार ।
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने की सूचना के लिए धन्यवाद यशोदा जी |
बेहतरीन रचना आशा दी
जवाब देंहटाएंहम जैसे श्रमिक जन बस दूर से ही इन्हें देखा करते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
बहुत खूब ....सादर नमस्कार दी
जवाब देंहटाएंसचमुच आलसी लोगों के बस का नहीं ये सुंदर गलीचा निहारना | सुंदर रचना आदरणीय आशा जी | सादर आभार और नमन |
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