एक दिन दो मित्र 
खड़े चौराहे पर 
बातें करते करते 
न जाने क्यों जोश में आ 
बहस पर उतारू हुए 
शर्त तक लगा बैठे 
दोनो और से शब्द वाण चले  
 थी वर्षा तीरों  की ऐसी 
  तमाशबीन आस पास के 
जम कर मजा लेने लगे 
कुछ थे अति उत्साही 
कि बीच में कूदे  
फिर क्या था
 तर्क कुतर्क
ने सीमा लांघी 
शर्त भी घायल हुई 
विवाद इस हद तक बढ़ा  
जोर से पैरों की ठोकर लगी 
शर्त दबी  जमीन में  
लोग यह तक भूले   
किस बात को ले कर 
शर्त लगाई गई कि 
स्थिति ऐसी  बेकाबू हुई |
                                               आशा 

सूचना हेतु आभार सर
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत भाव...बिम्ब, शैली सब मन को मोह गए..अदभुत ..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह ! क्या बात है ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१२ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह!!खूबसूरत भावाभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शुभा जी |
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