हे शिवशम्भू भोलेनाथ
नमन करू मनोयोग से
लगा दो मेरा बेड़ा पार
मझधार में खडी हूँ
ना डूबती हूँ
ना मिलता किनारा
तुम से ही आस लगाए हुए हूँ
तुम हो मेरे जीवन आधार
सहारा लिया कागज़ की नाव का
वह तिलतिल गलने लगी है
अगर हाथ न थामा मेरा
कोई ना होगा
जो पार लगाएगा नैया
अभी तो बहुत काम करने हैं
सभी अधर में लटके रह जाएंगे
तुम्हारे सहारे के बिना
है यही अरदास मेरी
निकालो मुझे मेरी उलझन से
जब सारे काम पूरे हो जाएंगे
तभी जीवन सफल हो पाएगा |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-09-2019) को "दो घूँट हाला" (चर्चा अंक- 3448) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार सर |
भोलेनाथ सब भली करेंगे !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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