03 सितंबर, 2019

पहेली जिन्दगी की


                                         
एक अजीब पहेली
है जिन्दगी
कभी चलती है
कभी ठहर जाती है
जब चलती है
तब अहसास कराती है
न जाने और कितने
पड़ाव अभी बाकी हैं
जिन्दगी की रफ्तार
कभी ज्यादा
तो कभी कम हो जाती है
यही पड़ाव है
या जिन्दगी का ठहराव
यही बात मुझे
समझ नहीं आती
और यह पहेली
अनसुलझी ही रह जाती
यह शाम का धुँधलका
कहता है
साँस अभी बाकी है
न हो उदास
आस अभी बाकी है
जीवन की शाम का
शायद यहीं कहीं है विराम
पर हो क्यूँ ऐसा सोच
पूरी रात अभी बाकी है |
आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! ज़िंदगी की पहेली को सुलझाती कुछ कहती कुछ सोच जगाती सुन्दर रचना !

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  2. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ९ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. बेहतरीन रचना , कुछ अल्फाजो में बहुत कुछ कहे गई आपकी कलम

    : ब्लॉग पंच
    Enoxo multimedia

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