छूटी हाथों से पतवार
सह न पाई वायु का वार
नाव चली उस ओर
जिधर हवा ले चली |
नदिया की धारा में नौका ने
बह कर किनारा छोड़ दिया
बीच का मार्ग अपना लिया
चली
उस ओर जिधर हवा ने रुख किया |
वायु
की तीव्रता ने उसको
बीच
नदी की ओर खींच
वह मार्ग भी भटकाया
हाथों से पतवार छूट गई |
नौका हिचकोले लेने लगी
कोई सहारा नहीं पा कर
आख़िरी सहारा याद आया
प्रभु को बार बार सुमिरन किया |
हे नौका के खिवैया तारो मुझे
इस भवसागर से बाहर निकालो
पतवार हो तुम्ही मेरी
इतना तो उपकार करो |
मैं तुम्हें भूली मेरी भूल हुई
दुनिया की रंगरलियों में खोई
अब याद आई तुम्हारी
जब उलझी इस दलदल में |
हे ईश्वर मुझे किनारे तक पहुंचा दो
क्षमा चाहती हूँ तुमसे
सुमिरन सदा तुम्हें करूंगी
हाथों से तुम्हारी पतवार न छोडूंगी|
आशा
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जवाब देंहटाएंआदरणीय आशा मौसी
जवाब देंहटाएंआपने ब्लाग लिंक गलत दिया है
सादर नमन
धन्यवाद यशोदा जी गलती सुधरवाई अच्छा किया |मैंने वह लिंक हटा दिया है |
हटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
जवाब देंहटाएंआदरणीय आशा जी आपकी रचना *छूटी हाथ से पतवार*
जवाब देंहटाएंपतवार परमात्मा के सुमरिन की पतवार विश्वास की श्रद्धा की पतवार ,मनुष्य जीवन की विश्वसनीय पतवार
दुःख में सुमिरन सब करें ! जब जीवन नौका बिन पतवार हिचकोले खाने लगती है तभी प्रभु की याद आती है !
जवाब देंहटाएंAccording to Stanford Medical, It's indeed the one and ONLY reason this country's women live 10 years longer and weigh 19 kilos lighter than we do.
जवाब देंहटाएं(And actually, it is not related to genetics or some secret diet and absolutely EVERYTHING around "HOW" they eat.)
P.S, I said "HOW", not "WHAT"...
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