ओ समय ठहरो ज़रा
मुझे भी साथ ले चलो
अभी कुछ काम शेष रहे हैं
उन्हें पूर्ण कर लेने दो |
जब कोई काम शेष न रहेगा
मन सुकून से रह सकेगा
फिर लौट न पाऊँगी
इससे नहीं परहेज मुझे |
पर कुछ अवकाश तो चाहिए
विचार विमर्श करने को
समय यदि मिल जाएगा
कोई गिला शिकवा न रहेगा
मन का भार उतर जाएगा |
वह शांत हो जाएगा
निश्चिन्त हो कर रह सकूंगी
सुख चैन की जिन्दगी जी सकूंगी
प्रभु भक्ति में लीन रहूँगी |
आशा
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जवाब देंहटाएंकोई गिला शिकवा न रहेगा
जवाब देंहटाएंमन का भार उतर जाएगा |
बहुत सुंदर रचना दी ।
Thanks for the comment
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 15 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार दिव्या जी |
वाह वाह ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! सार्थक सृजन !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार शास्त्री जी |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
Thanks for the comment
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
जवाब देंहटाएंसादर नमन
Thanks for the comment
हटाएंविचार विमर्श करने को
जवाब देंहटाएंसमय यदि मिल जाएगा
कोई गिला शिकवा न रहेगा
मन का भार उतर जाएगा |
सुन्दर सृजन...
Thanks for the comment
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विन्दभारती टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ऊषा किरण जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसमय प्रवाहमान है बहुत बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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