क्यूँ हुए विचलित
किसी ने तुम्हारा दिल तो नहीं दुखाया
या मन की गहराई में
कोई बुरा ख्याल आया |
बैठे हो गुमसुम बेजान प्रस्तर प्रतिमा से
मन में अशांति की दुकान लिए
यह क्या बात हुई दो बोल मीठे बोलो
मन की ग्रंथि खोलो |
कुछ तो हल निकलेगा
जब मुस्कान अधरों पर आएगी
समस्या का निदान भी
निकल ही आएगा |
मन क्लेश से न भरेगा
दो शब्द मीठे मिश्री से उसके
जब तुम्हारे कानों में पड़ेगे
वही मिठास मन में घोलेंगे |
तुम्हारी आत्मा तृप्त हो जाएगी
स्वयम को तुम सहज अनुभव करोगे
तुम्हारे मन का मलाल भी
तिरोहित हो जाएगा |
इस बिचलन से मुक्त हो
जीवन प्रसन्नता से जी सकोगे
सामाजिक प्राणी बनोगे
उदासी से दूर बिंदास जीवन जियोगे |
आशा
वाह ! बहुत उम्दा रचना ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद साधना |
सशक्त और सारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार स्वेता जी |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद शास्त्री जी |
बहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंबहुत सुन्दर सार्थक सृजन...।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद सुधा जी |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद ओंकार जी |