वह और मैं
क्यूँ  रह पाए साथ 
 समझे नहीं   
 एक छत के नीचे  
हमारे बीच 
 नहीं खून का रिश्ता 
जाना जरूर
 फिर भी  लगाव है 
दौनों के बीच 
यह अवश्य जाना 
 खोजा गया मैं    
तराशी गई  वह     
अटूट  बंध  
है क्या बंधन कच्चा
खोज न पाए  
गहरा लगाव रहा 
यही समझा
उसमें व मुझ में
जो मन भाया 
कुछ भी नहीं होती
अवधारणा
रही मन में मेरे   
हुई  है  दृढ
तभी  किया एकत्र 
एक घर में 
 है  सभी का विचार  
 एक ही जैसा  
तभी रह रहे हैं 
चहक रहे 
एक छत के  नीचे  
न दुराव है
न मन मुटाव ही
आपस में है    
 समझ से
बाहर
  है  मेरा 
तेरा   
सब का रहा  सांझा  
 
रहता ही है

सुंदर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
हटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंआभार सर मेरी रचना की सूचना के लिए |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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