छाई गरीबी
कैसे सही जाएगी
होगा अब क्या
कितना सोचा जाए
केवल सोच
कुछ कर न पाए
उठाने होंगे
आवश्यक कदम
सचमुच में
यदि एक भवन हो
सर छिपाने
रोटी खाने के लिए
सोच ही नहीं
कल्पना सतही हो
क्या लाभ होगा
कुछ भी नहीं
वर्तमान में इनका
कुछ न लाभ
रोजी है आवश्यक
हुए सक्रीय
कुछ तो राहत हो
मीठा हो फल
दूर हो दुःख दर्द
न हो अधीर
हो मन को सुकून |
आशा
Sundry
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंअच्छी कविता
जवाब देंहटाएंवाह ! उम्दा सृजन !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के३ लिए |