क्यूँ छला तुमने
क्यों तुमने छला उसे झूठे वादों में उलझा कर
है यह कौन सी रीत
क्यूँ भरमाया उसे |
जब वादे पूरे कर न सके
फिर उन्हें परवान
चढ़ाया किस लिए
किसके लिए |
क्यूँ दुःख दिया उसे
झूठे वादों से बहलाया
जो पूर्ण न हो पाएंगे
उसे कष्ट दिया |
खुशी को प्रतिबंधित कर
तुम्हें क्या धन मिला
उसके विश्वास को
क्यों डगमगाया |
तुम्हारी सोच है घटिया
कोई सहन नहीं कर पाता
उसका मन भोलाभाला
तभी भरमाया तुमने |
निश्छल प्यार के लिए
होना चाहिए मन विशाल
यही समझ नहीं पाए
तो क्या किया तुमने |
प्यार की शक्ति है अनुपम
यही खोज है सर्वोत्तम
उस तक पहुँच कर ही
जान पाओगे |
आशा
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (31-05-2021 ) को 'नेता अपने सम्मान के लिए लड़ते हैं' (चर्चा अंक 4082) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना कोइस अंक में शामिल करने के लिए आभार रवीन्द्र जी|
दिल को छू जाने वाली अत्यंत मार्मिक रचना!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद मनीषा जी |
बहुत उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका बहुत टिप्पणीव के लिए
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका बहुत टिप्पणीव के लिए
हटाएंमर्मस्पर्शी रचना...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका बहुत टिप्पणीव के लिए
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका टिप्पणी के लिए
हटाएंवाह ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद साधना जी |