बहुत कुछ बदल रहा है
ना हम परम्परा वादी रहे
ना ही आधुनिक बन पाए |
हार गए यह सोच कर
हम क्या से क्या हो गए
किसी ने प्यार से पुकारा नहीं
हमने भी कुछ स्वीकारा नहीं मन से |
किसी बात को मन में चुभने से
रोका भी नहीं गंभीरता से
विचार भी नहीं किया किसी को कैसा लगेगा
हमारे सतही व्यवहार का नजारा |
कोई क्या सोच रहा हमारे बारे में
इसकी हमें भी फिक्र नहीं
यही है आज आपसी व्यवहार का तरीका
किसी से नहीं सीखा दिखावे का राज |
इस तरह के प्यार का तरीका
जब देखा दूसरों का आना जाना
मन का अनचाहे भी मिलना जुलना
चेहरे पर मुखोटा लगा
घंटों वाद संवाद करना |
सभी जायज हैं
आज के समाज में
हर कार्यक्रम में छींटाकसी करने में
खुद को सबसे उत्तम समझने में |
सब का स्वागत करने के लिए
मन न होने पर भी दिखावा करना
दूसरे के महत्त्व को कम जताना
यही है आज का चलन |
आशा
आज की यह दुनिया सतहीपन और बनावट भरी ही रह गयी है ! किसीके आचरण से उसके मन की असली थाह नहीं मिलती ! सब कुछ झूठा और दिखावटी ही लगता है ! सार्थक सृजन !
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (16-1-22) को पुस्तकों का अवसाद " (चर्चा अंक-4311)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
दूसरे के महत्त्व को कम जताना
जवाब देंहटाएंयही है आज का चलन|
सच्चाई के काफी करीब हैं ये पंक्तियाँ।
सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
सुप्रभात
हटाएंधन्यवाद ब्रजेन्द्र जी टिप्पणी के लिए |
मन न होने पर भी दिखावा करना
जवाब देंहटाएंदूसरे के महत्त्व को कम जताना
यही है आज का चलन |
संभवतः सच्चाई यही है । बढ़िया अभिव्यक्ति आदरणीय ।
सुप्रभात
हटाएंधन्यवाद दीपक जी टिप्पणी के लिए |
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भारती दास जी टिप्पणी के लिए |
हकीकत को बयां करती बहुत ही उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंएक-एक पंक्ति सराहनीय है
Thanks for the comment ji
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