सम्मान मिले न मिले 
 अपना कर्तव्य है प्यारा मुझे 
यदि न्याय अपने कर्तव्य से
न किया 
मेरा मन संतप्त हो जाएगा |
परोपकारी जीवन जीने का था 
 अरमां रहा बचपन से ही मुझे 
अब भी है और भविष्य में  भी
रहेगा 
मैं अपना कर्तव्य निभाती
हूँ |
पूरी शिद्दत से समर्पान भाव
से 
सम्मान नहीं चाहती बदले में
अपार संतुष्टि मुझको मिलाती
है 
कोई एहसान नहीं करती किसी
पर |
प्राथमिकता देती हूँ अपने कर्तव्य
को 
नहीं है  दुष्कर जो मेरे लिए 
कुछ तो नियंत्रण रखना पड़ता
है 
अपनी बुद्धि पर विचारों पर
|
आशा 
सार्थक चिंतन ! अपने कर्तव्यों का जिसे ध्यान हो वह सदैव सुखी और संतुष्ट तो रहता ही है सम्मान भी पाता है !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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