रख धीरज ना हो अधीर इतना 
 इतनी भी जल्दी क्या
है 
अंत समय आते ही यह नश्वर शरीर
पञ्च तत्व में मिल जाने के लिए
धरा पर धरा ही रह जाएगा |
आत्मा साथ छोड़ शरीर का 
कहीं विलीन हो जाएगी
नया घर तलाशने के लिए  
चल देगी दूसरे घर की तलाश में 
या मुक्ति को प्राप्त हो जाएगी 
जैसे भी कर्म होंगे उसके 
वैसा ही फल मिलेगा उसको |
आशा सक्सेना 

एक शाश्वत चिरंतन सत्य ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसाधना धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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