कई बिम्ब उभरे बिखरे
बीती घटनाएं ,नवीन भाव
लुका छिपी खेलते मन में
बहुत छूटा कुछ ही रहा
जिज्ञासा को विराम न मिला
अनवरत पढ़ना लिखना
चल रहा था चलता रहा
कुछ से प्रशंसा मिली
कई निशब्द ही रहे
अनजाने में मन उचटा
व्यवधान भी आता रहा
मानसिक थकान भी
जब तब सताती
जाने कितना कुछ है
विचारों के समुन्दर में
कैसे उसे समेटूं
पन्नों पर सजाऊँ
बड़ा विचित्र यह
विधान विधि का
विधान विधि का
असीमित घटना क्रम
नित्य नए प्रयोग
यहाँ वहां बिखरे बिखरे
सहेजना उनको
लगता असंभव सा तभी
दिया विराम लेखन को
जो पहले लिखा
उसी पर ही
उसी पर ही
मनन प्रारम्भ किया
यादें सजीव हो उठीं
उन में फिर से खोने लगा
अशक्त तन मन को
उसी में रमता देख
वहीं हिचकोले लेने लगा
शायद है यही पूर्णविराम
सृजन की दुनिया का |
आशा