गाँव में छप्पर
के नीचे
खिड़की ऊपर एक
धोंसला
हर साल बना करता
था
था वह नीड़
गौरैया का
वह आती ठहरती
चहचहाती
चूजों को दाना
खिलाती
फिर कहीं उड़ जाती |
इस बार घर
सुधरवाया
पक्का करवाया
अब वहां नहीं
कोइ नीड़ बना
था इन्तजार पर
वह ना आई
एक बात ही समझ
में आई
उसे आधुनिकता पसंद न आई |
मैं रोज एकटक
उस स्थान को
देखती हूँ
सूना सूना देख उसे
बहुत आहत होती
हूँ
सोचती हू क्यूं पक्का
करवाया
यदि वह जगह वैसी
ही होती
गौरैया आँगन में
होती |
आशा