है नई जगह अनजाने लोग ,
फिर भी अपने से लगते हैं ,
हैं भिन्न भिन्न जीवन शैली ,
भाषा भी हैं अलग अलग ,
पर सब समझा जा सकता है ,
उनकी आत्मीयता और स्नेह ,
गति अवरोध दूर करते हैं ,
आसपास नए चेहरे ,
पर गहराई उनके स्नेह में,
उस ओर आकर्षित करती है,
हैं वे सब भारतवासी ,
साहचर्य भाव रखते हैं ,
भेद भाव से दूर बहुत ,
सब से प्रेम रखते हैं ,
अनेकता में एकता की ,
झलक यदि देखना है ,
तो आओ इस देश में ,
इतना प्यार तुम्हें मिलेगा ,
डूब जाओगे अपनेपन में ,
गर्व करोगे अतिथि हो कर ,
और जब बापिस जाओगे ,
जल्दी फिर लौटना चाहोगे |
आशा
28 अगस्त, 2010
26 अगस्त, 2010
स्मृतियां
सुरम्य वादियों में
दौनों ओर वृक्षों से घिरी ,
है एक पगडंडी ,
फूल पत्तियों से लदी डालियाँ ,
हिलती डुलती हैं ऐसे ,
जैसे करती हों स्वागत किसी का ,
चारों ओर हरियाली ,
सकरी सी सफेद सर्पिनी सी ,
दिखाई देती पगडंडी ,
जाती है बहुत दूर टीले तक ,
एक परिचिता सी ,
पहुंचते ही उस तक ,
गति आ जाती है पैरों में ,
टीले तक खींच ले जाती है ,
कई यादें ताजी कर जाती है ,
लगता है टीला,
किसी स्वर्ग के कौने सा ,
और यादों के रथ पर सवार ,
हो कर कई तस्वीरें ,
सामने से गुजरने लगती हैं ,
याद आता है वह बीता बचपन ,
जब अक्सर यहाँ आ जाते थे ,
घंटों खेला करते थे ,
बड़े छोटे का भेद न था ,
केवल प्यार ही पलता था ,
कभी न्यायाधीश बन ,
विक्रमादित्य की तरह ,
कई फैसले करते थे ,
न्याय सभी को देते थे ,
जब दिखते आसमान में ,
भूरे काले सुनहरे बादल ,
उनमे कई आकृतियाँ खोज , ,
कल्पना की उड़ान भरते थे ,
बढ़ चढ कर वर्णन उनका ,
कई बार किया करते थे ,
छोटे बड़े रंग बिरंगे पत्थर,
जब भी इकठ्ठा करते थे ,
अनमोल खजाना उन्हें समझ ,
गौरान्वित अनुभव करते थे ,
खजाने में संचित रत्नों की ,
अदला बदली भी करते थे ,
बचपन बीत गया ,
वह लौट कर ना आएगा ,
वे पुराने दिन ,
चल चित्र से साकार हो ,
स्मृतियों में छा जाते हैं ,
वे आज भी याद आते हैं |
आशा
23 अगस्त, 2010
घुँघरू
बंधी किंकिणी कमर पर
पहने पैरों में पैजनिया
जब ठुमक ठुमक चलता
सुनाई देती ध्वनि घुंघरूओं की
थामना चाहती उंगलियां
कहीं चोट न लगाजाए |
चाहती हूं थामूं उंगली उसकी ,
थामना चाहती उंगलियां
कहीं चोट न लगाजाए |
चाहती हूं थामूं उंगली उसकी ,
कहीं चोट ना लग जाए |
कारे कजरारे नयनो वाली
है अवगुंठन चहरे पर
चूड़ियों की खनक से
पैरों में सजी पायलों से
देती है झलक अपने आगमन की
पायलें भी ऐसी जो बोलती हैं
मन के भेद खोलती हैं
हैं हमजोली नूपुर की |
मीरा ने घुँघरू बांधे थे
वह कृष्ण प्रिया हो गयी
सुध बुध खो नृत्य करती
थी भक्ति भाव में सराबोर
आती है मधुर ध्वनि घुँघरू की
आज भी मीरा मंदिर से |
है मंदिर प्रांगण में आयोजन
सजधज कर आई बालाएं
हो विभोर नृत्य कर रहीं
उनका पद संचालन
और झंकार घुंघरूओं की
पहुंचती है दूर तक
प्रसन्न होता मन
वह मधुर झंकार सुन |
है पंडाल सजा सजाया
मंच पर पड़ती थाप
नर्तकियों के पैरों की
घुँघरूओं के बजाते ही
सब उसी रंग में रंगते जाते |
है घुंघरुओं की खनक सब मैं
पर हर बार भिन्न लगती है
पैरों के घुँघरू बचपन के
तो कभी हैं अभिसारिका के
कभी नाइका की पदचाप
तो कभी चंचल मोरनी की
थिरकन से लगते हैं |
घुँघरू हैं वही पर
हर बार भाव भिन्न और
बजने का अंदाज भिन्न
एक घुंगरू भी यदि अलग हो जाए
असहाय सा हो जाता है
अपना अस्तित्व
खोजता रहा जाता है |
है घुँघरू आधार नृत्य का
वह उसके बिना अधूरा है ,
बिना घुँघरू की मधुर धुन के ,
जीवन भी सूना सूना है |
आशा
चूड़ियों की खनक से
पैरों में सजी पायलों से
देती है झलक अपने आगमन की
पायलें भी ऐसी जो बोलती हैं
मन के भेद खोलती हैं
हैं हमजोली नूपुर की |
मीरा ने घुँघरू बांधे थे
वह कृष्ण प्रिया हो गयी
सुध बुध खो नृत्य करती
थी भक्ति भाव में सराबोर
आती है मधुर ध्वनि घुँघरू की
आज भी मीरा मंदिर से |
है मंदिर प्रांगण में आयोजन
सजधज कर आई बालाएं
हो विभोर नृत्य कर रहीं
उनका पद संचालन
और झंकार घुंघरूओं की
पहुंचती है दूर तक
प्रसन्न होता मन
वह मधुर झंकार सुन |
है पंडाल सजा सजाया
मंच पर पड़ती थाप
नर्तकियों के पैरों की
घुँघरूओं के बजाते ही
सब उसी रंग में रंगते जाते |
है घुंघरुओं की खनक सब मैं
पर हर बार भिन्न लगती है
पैरों के घुँघरू बचपन के
तो कभी हैं अभिसारिका के
कभी नाइका की पदचाप
तो कभी चंचल मोरनी की
थिरकन से लगते हैं |
घुँघरू हैं वही पर
हर बार भाव भिन्न और
बजने का अंदाज भिन्न
एक घुंगरू भी यदि अलग हो जाए
असहाय सा हो जाता है
अपना अस्तित्व
खोजता रहा जाता है |
है घुँघरू आधार नृत्य का
वह उसके बिना अधूरा है ,
बिना घुँघरू की मधुर धुन के ,
जीवन भी सूना सूना है |
आशा
22 अगस्त, 2010
जब रात होती है
जब रात होती है ,
नींद अपने बाहों में लेना चाहती है ,
तभी एक अनजानी शक्ति ,
अपनी ओर खिचती है ,
आत्म चिंतन के लिए बाध्य करती है ,
दिन भर जो कुछ होता है ,
चल चित्र की तरह आता है ,
आँखों के समक्ष ,
दिन भर क्या किया ?
विचार करती हूं ,
कभी विचारों में ठहराव भी आता है ,
गंभीर चिंतन और मनन
मन नियंत्रित कर पाता है ,
जो उचित होता है ,
कुछ खुशियाँ दे जाता है ,
पर जब त्रुति कोई होती है ,
पश्चाताप होता है ,
कैसे उसे सुधार पाऊं ,
बारम्बार बिचारती हूं ,
जाने कब आँख लग जाती है ,
कब सुबह हो जाती है ,
यह भी पता नहीं चलता ,
कभी अहम बीच में आता है ,
क्षमा याचना मुश्किल होती है ,
कहाँ गलत हूं जानती हूं ,
फिर भी स्वीकर नहीं करती ,
सोचती अवश्य हूं ,
भूल तुरंत सुधार लूं ,
एक निश्प्रह व्यक्ति की तरह ,
जब सोच पाउंगी ,
तभी अपने अंदर झांक पाउंगी ,
है यह कठिन परीक्षा की घड़ी,
फिर भी आशा रखती हूं ,
आत्म नियंत्रण कैसे हो ,
इसका पूरा ध्यान रखूंगी |
आशा
नींद अपने बाहों में लेना चाहती है ,
तभी एक अनजानी शक्ति ,
अपनी ओर खिचती है ,
आत्म चिंतन के लिए बाध्य करती है ,
दिन भर जो कुछ होता है ,
चल चित्र की तरह आता है ,
आँखों के समक्ष ,
दिन भर क्या किया ?
विचार करती हूं ,
कभी विचारों में ठहराव भी आता है ,
गंभीर चिंतन और मनन
मन नियंत्रित कर पाता है ,
जो उचित होता है ,
कुछ खुशियाँ दे जाता है ,
पर जब त्रुति कोई होती है ,
पश्चाताप होता है ,
कैसे उसे सुधार पाऊं ,
बारम्बार बिचारती हूं ,
जाने कब आँख लग जाती है ,
कब सुबह हो जाती है ,
यह भी पता नहीं चलता ,
कभी अहम बीच में आता है ,
क्षमा याचना मुश्किल होती है ,
कहाँ गलत हूं जानती हूं ,
फिर भी स्वीकर नहीं करती ,
सोचती अवश्य हूं ,
भूल तुरंत सुधार लूं ,
एक निश्प्रह व्यक्ति की तरह ,
जब सोच पाउंगी ,
तभी अपने अंदर झांक पाउंगी ,
है यह कठिन परीक्षा की घड़ी,
फिर भी आशा रखती हूं ,
आत्म नियंत्रण कैसे हो ,
इसका पूरा ध्यान रखूंगी |
आशा
20 अगस्त, 2010
पहले तुम ऐसी न थीं ,
पहले तुम ऐसी ना थीं
मेरी बैरी ना थीं
मैं आज भी तुम्हें
अपना शत्रु नहीं मानता |
ऐसा क्या हुआ कि
अब पीछे से वार करती हो
कहीं दुश्मन से तो
हाथ नहीं मिला बैठी हो |
वार ही यदि करना है
पीछे से नहीं सामने से करो
पर पहले सच्चाई जान लो
दृष्टि उस पर डाल लो |
कोई लाभ नहीं होगा
अन्धेरे में तीर चलाने से
मेरे समीप आओ
मुझे समझने का यत्न करो |
मेरे पास बैठो
मैं अभी भी ना
समझ पाया हूं तुम्हें
क्यूँ दुखों का सामान
इकट्ठा करती हो |
मेरी भावनाओं से खेलती हो
बिना बात नाराज होती हो
कुछ तो बात को समझो
अभी भी देर नहीं हुई है |
आओ दिल की बात करो
बैमनस्य दूर करने के लिए
सामंजस्य स्थापित करने के लिए
कुछ तो मुझसे कहो |
ह्रदय पर रखा हुआ बोझ
कुछ तो कम होगा
जब सच्चाई जान जाओगी
मुझे समझ पाओगी
तभी शांति का अनुभव होगा|
आशा
मैं आज भी तुम्हें
अपना शत्रु नहीं मानता |
ऐसा क्या हुआ कि
अब पीछे से वार करती हो
कहीं दुश्मन से तो
हाथ नहीं मिला बैठी हो |
वार ही यदि करना है
पीछे से नहीं सामने से करो
पर पहले सच्चाई जान लो
दृष्टि उस पर डाल लो |
कोई लाभ नहीं होगा
अन्धेरे में तीर चलाने से
मेरे समीप आओ
मुझे समझने का यत्न करो |
मेरे पास बैठो
मैं अभी भी ना
समझ पाया हूं तुम्हें
क्यूँ दुखों का सामान
इकट्ठा करती हो |
मेरी भावनाओं से खेलती हो
बिना बात नाराज होती हो
कुछ तो बात को समझो
अभी भी देर नहीं हुई है |
आओ दिल की बात करो
बैमनस्य दूर करने के लिए
सामंजस्य स्थापित करने के लिए
कुछ तो मुझसे कहो |
ह्रदय पर रखा हुआ बोझ
कुछ तो कम होगा
जब सच्चाई जान जाओगी
मुझे समझ पाओगी
तभी शांति का अनुभव होगा|
आशा
छिपा हुआ
मन मैं छिपी भावनाओं के ,
इस अनमोल खजाने को ,
क्यूँ अब तक अनछुआ रखा ,
आखिर ऐसी क्या बात थी ,
सब की नजरों से दूर रखा ,
मन में उठी भावनाओं को ,
पहले तो लिपिबद्भ किया ,
फिर क्यूँ सुप्त प्रतिभा को ,
फलने फूलने का अवसर ना दिया ,
सब की नजरों से दूर किसी कोने में ,
इसे छिपा कर रखा,
हर बात जो मन को अच्छी लगती है ,
जीवन में अपना स्थान रखती है ,
यह अधिकार किसी को नहीं है ,
कि उसे अपने साथ ले जाए ,
कोई सपना अधूरा रह जाए ,
साथ ही चला जाए ,
जीने का यह अंदाज ऐसा भी बुरा नहीं है ,
किसी भावना से जुड़ जाएं ,
यह कोई गुनाह नहीं है ,
जो बीत गया कल फिर ना आएगा ,
आनेवाले कल का भी कोई पता नहीं ,
वर्तमान में संचित पूंजी का ,
क्यूँ ना पूर्ण उपयोग करूं ,
इस अनमोल खजाने का,
जी भर कर उपभोग करूं |
आशा
,
इस अनमोल खजाने को ,
क्यूँ अब तक अनछुआ रखा ,
आखिर ऐसी क्या बात थी ,
सब की नजरों से दूर रखा ,
मन में उठी भावनाओं को ,
पहले तो लिपिबद्भ किया ,
फिर क्यूँ सुप्त प्रतिभा को ,
फलने फूलने का अवसर ना दिया ,
सब की नजरों से दूर किसी कोने में ,
इसे छिपा कर रखा,
हर बात जो मन को अच्छी लगती है ,
जीवन में अपना स्थान रखती है ,
यह अधिकार किसी को नहीं है ,
कि उसे अपने साथ ले जाए ,
कोई सपना अधूरा रह जाए ,
साथ ही चला जाए ,
जीने का यह अंदाज ऐसा भी बुरा नहीं है ,
किसी भावना से जुड़ जाएं ,
यह कोई गुनाह नहीं है ,
जो बीत गया कल फिर ना आएगा ,
आनेवाले कल का भी कोई पता नहीं ,
वर्तमान में संचित पूंजी का ,
क्यूँ ना पूर्ण उपयोग करूं ,
इस अनमोल खजाने का,
जी भर कर उपभोग करूं |
आशा
,
19 अगस्त, 2010
राखी आई राखी आई
राखी आई राखी आई
भाई बहन के स्नेह बंध का
यह त्यौहार अनोखा लाई
राखी आई राखी आई
पहन चुनरी ,मंहदी चूड़ी
बहना भी सजधज कर आई
राधा और रुकमा को लाई
राखी आई राखी आई
फैनी घेवर और मिठाई
फल और राखी बहना लाई
रंग बिरंगी राखी ला कर
अपने भैया को पहनाई
केवल धागा नहीं है राखी
रक्षा का बंधन है राखी
बांध कलाई पर राखी को
बहना देती दुआ भाई को |
आशा
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