घना घनेरा साल वन 
ऊँचे-ऊँचे वृक्ष वृन्द 
सूर्य किरणों से 
हाथ मिलाने की होड़ में
ऊँचे और ऊँचे होते जाते 
एक पेड़ की टहनी से 
बिछड़ा एक पीला सूखा  पत्ता 
मंद हवा के साथ-साथ 
गोल-गोल घूम रहा 
धीमी गति से आते-आते 
नीचे की धरती ताक रहा 
कई विचारों का मंथन 
और मन में उथल पुथल 
अपना अस्तित्व तलाश रहा 
गहन मनन चिंतन 
बहुत बार किया उसने 
पर एक ही झटके में 
जैसे ही धरती छुई उसने 
अपनों से बिछुड़ जाने पर 
व्यथित बहुत मन हुआ 
कुछ पल भी ना बीते होंगे 
एक राहगीर ने अनजाने में 
उस पर अपना पैर रखा 
जैसे ही पैर पड़ा उस पर 
वह बच न सका 
टूट गया 
अपनों से अलग होने का दुःख 
मन ही मन में  रह गया 
कुछ  सोच भी न पाया था कि
स्वयं धूल धूसरित हुआ 
धरती में  विलीन हुआ 
और सो गया चिर निंद्रा में 
दूसरी सुबह भी ना देख सका |
आशा
