29 दिसंबर, 2011
आने को है नया साल
27 दिसंबर, 2011
सुगंधित बयार
25 दिसंबर, 2011
सांता क्लाज
कहाँ से आए
बच्चों से तुम्हारा कैसा नाता
वे पूरे वर्ष राह देखते
मिलने को उत्सुक रहते |
क्या नया उपहार लाये
झोली में झांकना चाहते
बहुत प्रेम उनसे करते हो
वर्ष में बस एक ही बार
आने का सबब क्यूं न बताते |
बहुत कुछ दिया तुमने
प्यार दुलार और उपहार
सभी कुछ ला दिया तुमने
सन्देश प्रेम का दिया तुमंने |
तभी तो हर वर्ष तुम्हारा
इन्तजार सभी करते हैं
आवाज चर्च की घंटी की सुन
खुशी से झूम उठते हैं |
हैप्पी क्रिसमस ,मैरी क्रिसमस
बोल गले मिलते हैं
तुम्हारे आगमन की खुशी में
गाते नाचते झूमते झामते
केक काट खाते मिल बाँट
मन से जश्न खूब मनाते |
आशा
23 दिसंबर, 2011
अंदाज अलग जीने का
हूँ स्वप्नों की राज कुमारी
या कल्पना की लाल परी
पंख फैलाए उडाती फिरती
कभी किसी से नहीं डरी |
पास मेरे एक जादू की छड़ी
छू लेता जो भी उसे
प्रस्तर प्रतिमा बन जाता
मुझ में आत्म विशवास जगाता |
हूँ दृढ प्रतिज्ञ कर्तव्यनिष्ठ
हाथ डालती हूँ जहां
कदम चूमती सफलता वहाँ |
स्वतंत्र हो विचरण करती
छली न जाती कभी
बुराइयों से सदा लड़ी
हर मानक पर उतारी खरी |
पर दूर न रह पाई स्वप्नों से
भला लगता उनमें खोने में
यदि कोइ अधूरा रह जाता
समय लगता उसे भूलने में |
दिन हो या रात
यदि हो कल्पना साथ
होता अंदाज अलग जीने का
अपने मनोभाव बुनने का |
आशा
20 दिसंबर, 2011
सुकून
जब भी मैंने मिलना चाहा
सदा ही तुम्हें व्यस्त पाया
समाचार भी पहुंचाया
फिर भी उत्तर ना आया |
ऐसा क्या कह दिया
या की कोइ गुस्ताखी
मिल रही जिसकी सजा
हो इतने क्यूँ ख़फा |
है इन्तजार जबाव का
फैसला तुम पर छोड़ा
हैं दूरियां फिर भी
यूँ न बढ़ाओ उत्सुकता
कुछ तो कम होने दो
है मन में क्या तुम्हारे
मौन छोड़ मुखरित हो जाओ |
हूँ बेचैन इतना कि
राह देखते नहीं थकता
जब खुशिया लौटेंगी
तभी सुकून मिल पाएगा |
आशा
18 दिसंबर, 2011
पाषाण या बुझा अंगार
भावना शून्य ह्रदय लिए
ना कोइ उपमा ,अलंकार
या आसक्ति सौंदर्य के लिए |
जब भी सुनाई देती
टिकटिक घड़ी की
होता नहीं अवधान
ना ही प्रतिक्रया कोई |
है लोह ह्रदय या शोला
या बुझा हुआ अंगार
सब किरच किरच हो जाता
या भस्म हो जाता यहाँ |
है पत्थर दिल
खोया रहता अपने आप में
सिमटा रहता
ओढ़े हुए आवरण में |
ना उमंग ना कोई तरंग
लगें सभी ध्वनियाँ एकसी
हृदय में गुम हो जातीं
खो जाती जाने कहाँ |
कभी कुछ तो प्रभाव होता
पत्थर तक पिधलता है
दरक जाता है
पर है न जाने कैसा
यह संग दिल इंसान |
आशा
16 दिसंबर, 2011
कैसा अलाव कैसा जाड़ा
सर्दी का मौसम ,जलता अलाव
बैठे लोग घेरा बना कर
कोइ आता कोइ जाता
बैठा कोइ अलाव तापता |
आना जाना लगा रहता
फिर भी मोह छूट न पाता
क्यूँ कि कड़ी सर्दी से
है गहरा उसका नाता |
एक किशोर करता तैयारी
मार काम की उस पर भारी
निगाहें डालता ललचाई
पर लोभ संवरण कर तुरंत
चल देता अपने मार्ग पर |
कैसा अलाव कैसा जाड़ा
उसे अभी है दूर जाना
अब जाड़ा उसे नहीं सताता
है केवल काम से नाता |
आशा