प्यार और प्रेम में 
हैं पर्याय एक दूसरे के 
या अर्थ भिन्न उनके 
इहिलौकिक या पारलौकिक 
आत्मिक या भौतिक
 या ऐसी भावनाएं 
जो भ्रम में डुबोए रखें 
ये हैं  पत्थर पर पड़ी लकीरें
जो  मिटना नहीं चाहतीं 
और मिट भी नहीं सकतीं 
चाहे जो परिवर्तन आए
या   बदलाव नहीं आए 
अनेक विचार कई तर्क 
संबद्ध हुए इनसे 
यदि गहन चिंतन करें 
भावनाएं प्रवल  दिखाई देतीं  
बढते दुःख की पराकाष्ठा 
जब भी मन को छू जाती  
अन्धकार में 
जलते  दिए की एक किरण 
दिखाई तब भी दे जाती 
उसी ओर मैं खिंचता   जाता 
इसे ही सुखद  संकेत मान
प्यार लिए उसका ह्रदय में 
 आगे को   बढता जाता 
शायद यही प्रेम है
 या प्यार मेरा उसके  लिए
मैं उसे प्यार करता हूँ 
क्यूँ कि  है वह  देश मेरा |