चौक पुराऊँ अंगना
,दीप जलाऊँ द्वार |
खुशियों की सौगात
लिए ,आया यह त्यौहार ||
है स्वागत आज तेरा ,पर
मन में अवसाद |
मंहगाई की मार से ,होने
लगी उदास  ||
दीपक तेरी रौशनी,
फीकी लगती आज  |
परम्परा निभा रही है  ,भूली सभी मिठास ||     
पूजन अर्चन के लिए ,पहने वस्त्र सम्हाल  |
खूब चलाई चकरी ,फटाके और अनार ||
नन्ही के आई हिस्से ,फुलझड़ी का तार |
प्रेम बांटने आगया ,मनभावन त्यौहार || 
रंग बिरंगी रौशनी ,बिखरी चारों ओर |
दीपक तेरी रौशनी फीकी सी क्यूँ होय ||
 
रंग बिरंगी रौशनी ,बिखरी चारों ओर |
दीपक तेरी रौशनी फीकी सी क्यूँ होय ||
दीप मालिकाएं सजी   ,सभी घरों के पास |
क्यूँ फिर भी लगती कमीं ,दीप जलाऊँ द्वार ||
क्यूँ फिर भी लगती कमीं ,दीप जलाऊँ द्वार ||



